कश्मीर की वादियों में आएगा मज़ा, झेलम और डल में चलेंगी ई-बोट्स

जम्मू-कश्मीर सरकार ने अगले साल से श्रीनगर में जल परिवहन शुरू करने का फैसला लिया है। झेलम नदी और डल झील में ई़-बोट्स (नाव) के जरिए, अब लोग शहर के अलग-अलग हिस्सों में जा सकेंगे। इन ई-बोट्स को चलाने के लिए एक प्राइवेट एजेंसी को काम पर रखा जाएगा। ई-बोट्स के आने से श्रीनगर की सड़कों पर गाड़ियों की भीड़ कम होगी और पॉल्यूशन भी कम होगा।

 कश्मीर की वादियों में आएगा मज़ा, झेलम और डल में चलेंगी ई-बोट्स
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जम्मू-कश्मीर: जम्मू-कश्मीर सरकार ने अगले साल से श्रीनगर में जल परिवहन शुरू करने का फैसला लिया है। झेलम नदी और डल झील में ई़-बोट्स (नाव) के जरिए, अब लोग शहर के अलग-अलग हिस्सों में जा सकेंगे। इन ई-बोट्स को चलाने के लिए एक प्राइवेट एजेंसी को काम पर रखा जाएगा। ई-बोट्स के आने से श्रीनगर की सड़कों पर गाड़ियों की भीड़ कम होगी और पॉल्यूशन भी कम होगा।

श्रीनगर नगर निगम के कमिश्नर अतहर अमीर खान ने बताया कि “यात्रियों के लिए, झेलम नदी और डल झील में अलग-अलग रूट्स पर लगभग 32 नावें चलेंगी। शहर में ज़रूरत के हिसाब से रूट सिलेक्ट किए जाएंगे, जहां ये ई-बोट्स पब्लिक ट्रांसपोर्ट की तरह चलेंगी। ”

अतहर आमिर ने कहा, इस वाटर ट्रांसपोर्ट की ख़ास बात ये है कि ये न केवल वक़्त बचाएगा बल्कि क़िफायती भी होगा। “अगर आप मौजूदा वक़्त में नाव लेते हैं, तो आपको 500 रुपये चुकाने पड़ेंगे। लेकिन ई-बोट्स के आ जाने से सब बदल जाएगा। ई-बोट्स का किराया पब्लिक ट्रांसपोर्ट के बराबर होगा। किराए की क़ीमत सिर्फ 20 रूपये से 50 रूपये तक होगा। इसकी सबसे अच्छी बात ये होगी कि, हर 15 मिनट के बाद, एक नाव घाट पर आएगी और जाएगी। जिसकी वजह से यात्रियों को घंटों इंतजार करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।”

पहले भी था वॉटर ट्रांसपोर्ट

सदियों से, कश्मीर की आर्थिक गतिविधियों के लिए वॉटर ट्रांसपोर्ट एक अहम हिस्सा रहा है। बुजुर्ग बताते हैं कि झेलम को पहले 'विथ प्रवा' के नाम से जाना जाता था। और ललितादित्य और अवंतीवर्मन के साम्राज्य के दौरान इसकी पूजा की जाती थी। इतिहास के पन्नों को पलटने से पता चलता है कि, कश्मीर में वॉटर ट्रांसपोर्ट का आधुनिकीकरण राजा ज़ैन उल आबिदीन बुदशाह (1420 से 1470) की हुक़ूमत के दौरान हुआ। वो परांडा (एक प्राचीन नाव) से झेलम में सफ़र करता था। और 19वीं शताब्दी तक आने जाने के लिए लोग इसी का प्रयोग किया करते थे।

अंग्रेज भी अपने ज़माने में हाउस बोट के जरिए ही झेलम से होकर वुलर लेक और सिंध नदी तक जाते थे। उस वक़्त झेलम के तट पर कई घाट थे। अमिरा कदल से पुराने शहर सफा कदल और नूरबाग तक जाने के लिए लोग नावों का सहारा लेते थे।

1967 से लोग कर रहे थे मांग

साल 1967 से ही लोग, कश्मीर में वॉटर ट्रांसपोर्ट को फिर से शुरू करने की मांग कर रहे हैं। यहां तक कि कारोबारी महासंघ ने वॉटर ट्रांसपोर्ट को जल्द से जल्द बहाल करने के लिए, पूर्व मुख्यमंत्री जी एम सादिक को एक मेमोरेंडम भी सौंपा था।

अतहर आमिर ने बताया “हम सिर्फ पैसेंजर ट्रांस्पोर्ट शुरू कर रहे हैं। कंपनी को नावें खरीदने में अभी आठ से नौ महीने लगेंगे। इसके अलावा झेलम में किचड़ और गाद की भी सफाई होनी है। हमें उम्मीद है कि अगले साल इस योजना को शुरू कर दिया जाएगा। ” दरअसल, स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के तहत, झेलम नदी के घाटों की मरम्मत का काम किया जा रहा है। आमिर ने आगे बताया कि, “हमने अब तक 20 घाटों की मरम्मत की है। और लगभग 15 घाटों पर काम चल रहा है, जो अपने तय वक़्त तक पूरा हो जाएगा।'' 

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