कठुआ का माता सुकराला देवी मंदिर भक्तों की आस्था का एक प्रमुख केंद्र है, यहां लोगों की मन्नत पूरी होती है

जम्मू कश्मीर के कठुआ में डुग्गर प्रदेश के देवी मंदिरों में माता सुकराला देवी का मंदिर भी बड़ा प्रसिद्ध है। सुकराला माता को मल्ल देवी के नाम से भी पुकारा जाता है। ये देवी मंदिर जिला कठुआ के एक प्रसिद्ध नगर बिलावर से 9 किलोमीटर दूर उत्तर पूर्व की ओर एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है। ये मंदिर साधारण मंदिरों की तरह ही है परंतु इसका कलश और इसकी मान्यता बहुत ऊंची है और पहाड़ो पर होने के कारण बड़ी दूर से दिखाई देता है। मंदिर में मल्ल देवी की पिंडी है जो बहुमूल्य गहनों तथा वस्त्रों से सजी हुई है। माता का दरबार भजन कीर्तन तथा जयकारों से गूंजता रहता है।

कठुआ का माता सुकराला देवी मंदिर भक्तों की आस्था का एक प्रमुख केंद्र है, यहां लोगों की मन्नत पूरी होती है
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सुकराला माता मन्दिर:  जम्मू कश्मीर के कठुआ में डुग्गर प्रदेश के देवी मंदिरों में माता सुकराला देवी का मंदिर भी बड़ा प्रसिद्ध है। सुकराला माता को मल्ल देवी के नाम से भी पुकारा जाता है। ये देवी मंदिर जिला कठुआ के एक प्रसिद्ध नगर बिलावर से 9 किलोमीटर दूर उत्तर पूर्व की ओर एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है। ये मंदिर साधारण मंदिरों की तरह ही है परंतु इसका कलश और इसकी मान्यता बहुत ऊंची है और पहाड़ो पर होने के कारण बड़ी दूर से दिखाई देता है। मंदिर में मल्ल देवी की पिंडी है जो बहुमूल्य गहनों तथा वस्त्रों से सजी हुई है। माता का दरबार भजन कीर्तन तथा जयकारों से गूंजता रहता है। 12 माह में हमेशा यहां पर भजन किर्तन का आयोजन होता रहता है, श्रद्धालु भक्तजन माता के दर्शन के लिए हमेशा आते रहते है। 


ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में ये स्थान शुक्रालय और फिर सुकराला के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इतिहासकार जेएन गुनहार के अनुसार माता सुकराला भगवती शारदा का ही अवतार है। एक पुरानी कथा के अनुसार बसोहली के एक महात्मा काशी में धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद कश्मीर गए जहां उन्होंने श्री अमरनाथ तथा माता शारदा के मंदिरों के अतिरिक्त कई दूसरे धार्मिक स्थानों तथा मंदिरों की यात्रा भी की। वह माता शारदा के सच्चे भक्त थे और प्रतिदिन श्रद्धा पूर्वक माता की पूजा करते थे। पूजा करते करते वह अपने आप को भूल जाते थे और पूर्ण रूप से माता शारदा की स्तुति में खो जाते थे। एक दिन माता शारदा महात्मा जी की भक्ति से प्रसन्न होकर मां शारदा ने महात्मा जी से उनकी इच्छा जाननी चाही। तो महात्मा जी ने कहा, माता यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे पूर्ण रूप से दर्शन दें, मैं केवल आप के दर्शन का अभिलाषी हूं। माता ने महात्मा जी को साक्षात दर्शन दिए और उसकी मनोकामना के विषय में पूछा। महात्मा जी ने कहा अब मैं अपने घर वापस जाना चाहता हूं। इतनी दूर से चलकर आप की आराधना के लिए यहां तक आना मेरे लिए संभव नहीं होगा। इसलिए मैं चाहता हूं कि आप हमारे क्षेत्र में वास करें। ताकि सुविधा पूर्व आप की पूजा कर सकूं और इस क्षेत्र के लोग भी आपका आशीर्वाद प्राप्त कर सकें। भगवती शारदा ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और वचन दिया कि वह उस क्षेत्र में उनके पोतों के समय प्रगट होंगी।


अधिकतर लोगों का विश्वास है कि यह मंदिर चंबा के राजा उमेद सिंह ने बनवाया था। 
इस मंदिर का संबंध प्रसिद्ध, तांत्रिक सूर्यनारायण से भी जोड़ा जाता है जो डोगरी भाषा के प्रसिद्ध कवि दत्तू के गुरू थे। वह 1811 ई में यहां आए थे और इसी स्थान पर महाकाली का यंत्र स्थापित किया था। परंतु स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मंदिर उनके आने से पहले का है। मंदिर के भीतरी भाग को सुन्दर ढंग से सजाया गया है। माता के दरबार में पहुंच कर भक्तों को असीम आनंद का अनुभव होता है। मंदिर की बाहरी दीवार पर द्वारपाल के रूप में भैरव तथा महावीर जी की मूर्तियां है। मंदिर तक पहुंचने के लिए यात्रियों का लगभग 150 सीढिय़ां चढऩी पड़ती है। सीढिय़ों के दोनों ओर दुकानें हैं जहां से यात्री माता की भेंट, प्रसाद तथा चित्र आदि खरीदते है। आसपास का वातावरण बड़ा स्वच्छ और आकर्षक है। रविवार, मंगलवार और खासतौर पर नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ होती है। मान्यता है कि भक्तों की हर मनोकामना चाहे वह संतान प्राप्ति के लिए हो, बीमारी से छुटकारा हासिल करने, खोये हुए किसी मित्र या संबंधी की वापसी, नौकरी की प्राप्ति या किसी कष्ट के निवारण के साथ संबंध रखती हो माता रानी उसे पूरा करती है। माता के दरबार से कोई खाली नहीं लौटता। 

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