लद्दाख का सबसे फेमस फेस्टिवल- हेमिस फेस्टिवल

Written By Last Updated: Jul 27, 2023, 08:20 PM IST

लद्दाख: लद्दाख की ठंडी और बंजर ज़मीन में जैसे फिर से जान आ जाती है। जब यहां हेमिस फेस्टिवल आता है।  जो हर साल लद्दाख की मशहूर हेमिस  मोनेस्ट्री में मनाया जाता है। बोद्ध धर्म को मानने वाले बुद्दिष्ट और बौद्ध मॉन्क या साधुओं का सबसे मशहूर और ज़रूरी फेस्टिवल है। जिसे देखने के लिए दुनिया भर के लोगों की भीड़ यहां इकट्ठा होती है। बहुत सारे भारतीय और विदेशी टूरिस्ट यहां ख़ासतौर पर हेमिस फेस्टिवल को देखने के लिए ही आते हैं। 

दो दिन तक चले वाले इस त्योहार को बुद्दिष्ट गुरु पद्मसंभव की जयंती पर मनाया जाता है, जिन्हें गुरु रिनपोछे भी कहा जाता है। हर साल अपने इस आध्यात्मिक गुरु की याद में लद्दाख के बुद्धिष्ट, इस त्योहार को तिब्बती लूनर कैलेंडर के 10वें दिन मनाते हैं। जिसमें बौद्ध मॉन्क तरह-तरह के रंगीन कपड़े और अलग-अलग चेहरों वाले मास्क पहनकर, मास्क डांस करते हैं। जिसे कहा जाता है झम्म डांस।  

क्यों मनाया जाता हैं हेमिस त्योहार? 

गुरु पद्मसंभव की बात करें तो बौद्ध मॉन्क के अनुसार, इनका जन्म 8वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ था। उन्होंने हिमालयी साम्राज्य में तांत्रिक बौद्ध धर्म की शुरुआत की। इस शक्तिशाली या यूं कहें एक प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु के बारे में कहा जाता है कि, उन्होंने राक्षसों और बुरी आत्माओं को भगाया था। और यहां के लोगों को उनकी कैद से बचाया था। उन्होंने तिब्बत में बौद्ध धर्म का ख़ूब प्रचार-प्रसार किया। 
हेमिस मोनेस्ट्री के ही एक लामा ने बताया कि, गुरु पद्मसंभव के आठ रूप या अवतार थे। और इन रूपों में उन्होंने लोगों को धर्म का उपदेश दिया। कहा जाता है कि उन्होंने अपने अलग-अलग अवतारों में उपदेश देने के अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल किया था, जहां वे एक अवतार में शांत होते थे, तो दूसरे में कठोर तरीका इस्तेमाल करते थे।

लद्दाख की सबसे बड़ी मोनेस्ट्री हेमिस गोम्पा के विशाल प्रांगण यानि आंगन में मनाये जाने वाले इस त्यौहार के दोनों दिनों में बहुत सारा डांस, म्यूजिक और तरह तरह की परफॉर्मेंस होती हैं। मोनेस्ट्री का पूरा आंगन ढोल की थाप, झांझ की थाप और घंटियों की मनमोहक आवाज़ से गूंज उठता है। महासिद्धों के थंगका (बौद्ध पेंटिंग) और भगवान बुद्ध और गुरु पद्मसंभव की बड़ी मूर्तियों से सजी मोनेस्ट्री भक्तों को भक्तिभाव में डुबो देती है।

फेस्टिवल की शुरूआत ध्वजस्तंभ के सामने खड़े दो मॉन्क डुंगचेन यानि एक लंबी तुरही बजाकर करते हैं। इसके बाद कुछ डांसर पवित्र स्तंभ के चारों ओर एक सर्किल में नृत्य करते हैं। इस वक़्त बजने वाले बहुत सारे डमरू और घंटे, घंटियों की आवाज़ यहां मौजूद दर्शकों की भीड़ को मंत्रमुग्ध कर देती है।

बुराई पर अच्छाई की जीत

छम्म डांस हेमिस फेस्टिवल का एक ज़रूरी हिस्सा है जिसमें लामा और बौद्ध भिक्षु नृत्य करते हैं। इस पवित्र नृत्य के लिए, वे गुरु पद्मसंभव के आठ अलग-अलग अवतारों के नकाब पहनते हैं। और फेस्टिवल के आख़िर में, डांस का एक ऐसा वक़्त आता है जिसमें, आटे से बनी एक लाल रंग की मूर्ति को लाया जाता है। इस मूर्ति का ख़ास महत्व है। जिसको डांस के आखिर में एक नकाबपोश लामा अपनी तलवार से नष्ट करता है। इसे बुराई के विनाश का प्रतीक माना जाता है। इस दौरान मूर्ति को तोड़ दिया जाता है और जला दिया जाता है। और इसकी राख को अलग-अलग दिशाओं में फेंका जाता है। जिसको मौत के बाद आत्मा की शुद्धि कहा जाता है। बुद्धिष्ट लोगों के लिए ये बहुत ज्यादा अहम है और वे इसे जरूरी मानते हैं। यही इनकी ख़ासियत है। 

हेमिस फेस्टिवल बौद्ध और तिब्बती समुदायों का सबसे बड़ा कल्चरल फेस्टिवल है। दो दिन तक चलने वाले इस फेस्टिवल के दौरान लद्दाख का शांत आसमान, रंग और बहुत सारी हलचल से भरी जमीन का गवाह बनता है। लद्दाख में तो वैसे बहुत सारे फेस्टिवल होते हैं। और अगर आप भी अपनी लद्दाख ट्रिप की प्लॉनिंग कर रहें हैं तो ऐसे ही किसी फेस्टिवल के आस-पास ही अपनी ट्रिप फाइनल करें।