विश्व पर्यावरण दिवस पर कैसे बदल रहा जम्मू कश्मीर में मौसम का हाल जाने हमारी इस ख़ास रिपोर्ट में

Written By Rishikesh Pathak Last Updated: Jun 05, 2023, 01:34 PM IST

जम्मू और कश्मीर : मानव का और प्रकृति का सम्बन्ध सदियों पुराना है । ये एक दूसरे के पूरक है मानव के जीवन की कल्पना प्रकृति के बगैर नहीं की जा सकती है लेकिन आज के बदलते मशीनी दौर में लोग इतने स्वार्थी होते जा रहे है कि वो अपने निजी हितों को साधने के लिए प्रकृति को लगातार नुकसान पहुंचा रहे है। ये धरती हमें सबकुछ देती है लेकिन बदले में इंसान इस धरती को ही नुकसान पहुंचाने में लगा हुआ है। आज विश्व पर्यावरण दिवस है और ये बहुत बड़ी चर्चा का विषय है कि जिस तरह से लगातार पर्यावरण प्रभावित हो रहा है उससे मौसम की टाइमिंग को लेकर भी कई सवाल खड़े कर दिये है। 

विश्व पर्यावरण दिवस पांच जून यानी आज है। इसके लिए लोगों में जागरूकता की हुंकार जरूरी है ताकि पर्यावरण को सुरक्षित व संरक्षित किया जा सके। स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों समेत अन्य संस्थानों, एनजीओ, एनवॉयरमेन्ट डिपार्टमेन्ट और सरकार को भी उचित कदम उठाने की जरूरत है। कारण साफ- पेड़ों को काटना, प्रदूषण और गैस उत्सर्जन से प्रदेश में निर्धारित समय से पहले मौसम में बदलाव हो रहा है जिससे जनजीवन पर गहरा असर पड़ रहा है।


जम्मू और कश्मीर के बदलते मौसम की बात करना इस परिवेश में बिल्कुल सटीक बैठ सकता है। लगातार होते जलवायु परिवर्तन ने लोगों को सामने कई तरह के सवाल खड़े कर दिये है। बीते साल की तुलना में इस बार मई में सिर्फ तीन दिन ही 44 डिग्री सेल्सियस औसतन तापमान दर्ज किया गया। बाकी के  दिनों में यहां ठंडक बरकरार रही। 15 मई, 2022 को जम्मू का एवरेज तापमान 43.9, 27 मई, 2021 में 41.6, 28 मई, 2020 में 42.6, 31 मई, 2019 को 44.1 सेल्सियस तापमान रहा था।

जम्मू विश्वविद्यालय के जियोग्राफिक डिपार्टमेन्ट के बीस साल के रिसर्च में सामने आया है कि बारिश का पैट्रन पूरी तरह से बदल गया है। शिक्षाविद और विशेषज्ञ डॉ. सरफराज असगर का कहना है- अचानक तापमान में गिरावट और वर्षा पैट्रन बदलना कृषि के लिए भी हानिकारक है।रिसर्च के बेस पर कहा कि 30 साल में कटड़ा में एवरेज तापमान 1.44, भद्रवाह में 1.42 और जम्मू में 0.427 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है।


कार्यशैली में बदलाव करने की जरूरत

डॉ. सरफराज का कहना है कि आदमी को भी कार्यशैली में बदलाव करना होगा। बीस साल पहले जिस तरह की किसानी की जाती थी। उससे हटकर काम करने की जरूरत है। सुझाव दिया कि मक्की, धान, गेहूं के पुराने फसली चक्र को छोड़ना होगा। इसके साथ मनुष्य को प्रकृति के साथ उचित व्यवहार करना होगा। इसके लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण किया जाए। जैसा कि मौसम बदल रहा है हमें भी खुद को उसी हिसाब से बदलना होगा, तभी पर्यावरण का ख्याल रखकर हम भी सुरक्षित तरीके से रह पायेंगे। ये बहुत बड़ा विषय है जिस पर गम्भींर मंथन और आत्मचिंतन की जरूरत है क्योंकि हमारी संसाधनों को उपभोग करने की स्पीड में लगातार इजाफा हो रहा है लेकिन हमारी जिम्मेदारी पर्यावरण की ओर जीरो होती जा रही है।