गांदरबल : आस्था किसी मान्यता की मौहताज नहीं होती है। इसका आधार विश्वास पर टिका होता है। हमारे देश में जितने भी मंदिर है उनके पीछे किसी न किसी तरह की कोई मान्यता है। आज हम आपको कश्मीर की खीर भवानी माता के दर्शन कराते है और बताते वहां की आस्था का आधार पढ़िए हमारी इस खास रिपोर्ट में ।
आज हमारी यात्रा शुरू होगी कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर से यहां से 27 किलोमीटर दूर तुलमुल गांव है। जहां पर आपको आस्था और विश्वास का ऐसा संगम देखने को मिलेगा जोकि दूर दूराज से आए भक्तों को अपनी ओर खींचकर भक्ति रस में डूबों देता है। जी हां हम दर्शन करेंगे खीर भवानी माता की जिन्हें श्रीर भवानी और राज्ञा देवी के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के मुख्य पूजारी की माने तो यहां की पौराणिक मान्याताएं है। लंकापति रावण मां राज्ञा का बहुत बड़ा भक्त था और माता भी रावण की भक्ति से हमेशा खुश रहती थी। लेकिन रावण के बढ़ते दूराचार और सीता माता के हरण से माता खीर भवानी इतना नाराज हुई कि उन्होंने अपना स्थान छोड़ दिया और उन्होंने हनुमान जी से कहा कि वो उन्हें कहीं और ले चले तब वो जल के रूप में हनुमान जी के साथ कश्मीर के तुलमुल में आ गई.। जहां उनकी स्थापना जल के बीचों बीच की गई। आज भी माता शक्ति के रूप में भगवान शिव की मूर्ति चारों ओर से घिरे जल में स्थापित है। मान्यता है कि स्थापित मूर्तियों के चारो ओर का पानी का कुण्ड अलग अलग परिस्थितियों में सात रंग बदलता है। कोरोना की भारी विपत्ति जब पूरे भारत पर थी तब इस पानी का रंग काला पड़ गया था। लेकिन जैसे ही कोरोना की लहर कमजोर पड़ने लगी तो पानी का रंग पहले हरा हो गया और अब सामान्य रंग का हो गया है।
जम्मू और कश्मीर के राजा प्रताप सिंह ने मन्दिर का पूननिर्माण करवाया और मां को खीर का भोग लगाया तब से इन माता को खीर भवानी माता कहा जाने लगा। मन्दिर को चलाने के लिए बोर्ड की स्थापना की गई है। जिसके संरक्षक महाराजा हरि सिंह के बेटे डॉ. कर्ण सिंह है। माता खीर भवानी मन्दिर की खास बात ये है कि हर धर्म के लोग माता की भक्ति करने के लिए यहां पर आते है और मुस्लिम भाई भी मन्दिर के रिवाजों का पूरा ख्याल करते है। ये पहला मन्दिर होगा जहां पर 17 मुस्लिम मन्दिर की सेवा काम में नियुक्त किये गये है। सभी लोगों के मन में आस्था का एक ही केन्द्र रहता है मां खीर भवानी की भक्ति।
मन्दिर में मुख्य रूप से खीर का भोग लगाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि मां को खीर बहुत पसन्द है। इसलिए सभी भक्त खीर का प्रसाद जरूर चढ़ाते है। मन्दिर में जो पानी का कुण्ड है उसकी गहराई बहुत ज्यादा है। अंग्रेजों के समय में बंसत के समय 1886 में कुण्ड के पानी का रंग बैंगनी हो गया था। इस बात की सूचना वॉल्टर लॉरेन्स ने दी थी । यहां इस मन्दिर में हर साल ज्येष्ठ अष्टमी को बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें दूर दराज के इलाकों से भक्त माता के दर्शन करने आते है।
मकामी दूकानदार यहां पर माता के भोग के लिए प्रसाद की व्यवस्था रखते है। प्रसाद में देवी को मुख्य रूप से कन्द का भोग लगाया जाता है। जिसमें चीनी की चाश्नी का इस्तेमाल किया जाता है। .दुकानदार यहां पर आने वाले श्रद्धालू भक्तों की हर जरूरत का ध्यान रखते है। मेले के समय में मन्दिर में सुरक्षा व्यवस्था का विशेष इन्तजाम सरकार द्वारा किया जाता है। मन्दिर के प्रागण में धर्मशाला भी है जिसमें दूर से आने वाले श्रद्धालूओं के लिए कम्बल आदि की सुविधा का इंतजाम किया जाता है।
माता खीर भवानी के दर्शन के लिए और सुरक्षा व्यवस्था के लिए सरकार ने अलग से इंतजाम किया हुआ है.,खीर भवानी माता कश्मीरी पंडितो आराध्य देवी होने के साथ ही विदेशों तक अपने चमत्कारों के लिए जानी जाती है। .