कश्मीरी पण्डितों की आस्था का केन्द्र प्राचीन नारानाग मन्दिर जल्द हो सकता है यूनेस्को की लिस्ट में शामिल

Written By Rishikesh Pathak Last Updated: May 15, 2023, 01:07 PM IST

गांदरबल : कश्मीर दुनियाभर में अपनी खुबसुरती के लिए जाना जाता है पर बहुत कम लोग जानते है कि कश्मीर अपने प्राचीन मन्दिरों के लिए भी जाना जाता है और ऐसा ही एक प्राचीन शिव मन्दिर है नारानाग जिसके एक तरफ हरमुख पर्वत है। दूसरी ओर गंगाबल झील ट्रेक तो नीचे की ओर भूतेश्वर पर्वत है। आज ये मन्दिर खण्डहर का रूप ले चुका है । लेकिन इसकी मान्यता आज भी उतनी ही है, पढ़िए हमारी इस खास रिपोर्ट में ।

तस्वीरें देखिए, पहाड़ो के बीच घिरा हुआ ये कोई खण्डहर है, लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये कोई खण्डहर नहीं है बल्कि ये प्राचीन मन्दिरों का एक ऐसा दुर्लभ समूह है। जिसे देखने के लिए पूरे साल टूरिस्टों का ताता लगा रहता है। ये मन्दिर समूह कश्मीर के गांदरबल जिले में  है। इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि इन सभी मन्दिर का मुख एक दूसरे की ओर है और ये सभी मन्दिर भगवान शिव और भगवान विष्णु को समर्पित है। विश्व की प्राचीन धरोहर में इस मन्दिर को शामिल करने की मांग को लेकर विचार भी हो रहा है, जिसे लेकर सर्वे का काम भी पूरा हो चुका है। ये मन्दिर समूह भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के अन्दर रजिस्टर्ड भी है। लेकिन मन्दिर को बचाने के लिए पुरातत्व विभाग ने कुछ खास प्रयास नहीं किये है। मन्दिर के चारों ओर आधी अधूरी बाऊन्ड्री की गई है.,मन्दिर का निर्माण काले ग्रेनाइट पत्थरों की मदद से किया गया है। इसके इतिहास की बात करें तो बहुत ज्यादा पुराना है। सबसे पहले 137 ईसा पूर्व में राजा जाणुका ने भगवान शिव का मन्दिर पत्थरों से बनावाया था। बाद में 8 वीं शताब्दी में काराकोटा वंश के राजा ललितादित्य मुक्तापिदा ने इसका दुबारा निर्माण करवाया तब काले रंग के बड़े बड़े ग्रेनाइट पत्थरों की मदद से मन्दिर समूह का निर्माण करवाया गया।  नारानाग मन्दिर से लोग गंगाबल तक ट्रेकिंग भी करते है जिसको करने में लगभग 5 दिन का समय भी लगता है। मन्दिर के ऊपर हरमुख पर्वत को रामाराधन भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान परशुराम ने यहां पर बैठकर भगवान शिव का ध्यान किया था। इस जगह को कश्मीर का कैलाश भी कहा जाता है। 

 

प्राचीन मन्दिर नारानाग की बनावट में 8वीं शताब्दी की कला शैली आपकों साफ दिखाई देगी। उस समय में कैसे पिल्लरों का निर्माण होता था। कैसे एक पत्थर से दूसरे पत्थर को जोड़कर मन्दिर का निर्माण किया गया है। यहां आकर आप आसानी से समझ सकते है। टूरिस्टो के लिए ये एक पसन्दीदा हैरिटेज साइट है जहां तस्वीरें लेने की भी मनाई नहीं है। सर्दियों में यहां टूरिस्टो का अच्छी खासी भीड़ आती है। इस हैरिटेज साइट को पुरातत्व विभाग ने अतिक्रमण से बचाने के लिए जो दीवार बनाई है, वो भी जर्जर अवस्था में है। सरकार को इस धरोहर को बचाने के लिए कुछ पुख्ता इंतजाम करने चाहिए। सिंधु नदी की एक सहायक नदी वांगथ इस मन्दिर के किनारे से बहती है। बर्फ की चादर से ढके इस पूरे इलाके को देखकर किसी भी तरह की उलझन हो उसे आप जरूर भूल जायेंगे। मन और मस्तिष्क की शांति के साथ आपको यहां पर आत्मिक शांति का भी अनुभव होगा.। स्थानीय निवासियों का मानना है कि भगवान शिव का ये मन्दिर कई वर्षों पुराना है और उन्होंने तो बचपन से इसे देखा ही है लेकिन उनके बाप दादा के जमाने से इस मन्दिर को वो देखते आये है और वो चाहते है कि किसी भी तरह से इसे संरक्षित किया जा सके ताकि टूरिस्टों के आने से उनकी कमाई भी होती रहे। 

 

ट्रेकिंग करने वाले टूरिस्टों को ये जगह अपनी ओर आकर्षित करती है। क्योंकि यहां पर पैदल घुम घुम कर आप प्रकृति के नजारें तो देख सकते है लेकिन मीलों आपको सुनसान पहाड़ के अलावा कहीं न कहीं पर कुछ जीव जन्तू नजर आ सकते है लेकिन आदमी मुश्किल से ही नजर आयेंगे। पहाड़ो पर जैसे जैसे आप आगे की ओर बढ़ेंगे तो आपको साफ पानी की झीले आकाश का रंग समेटे दिखाई देती है। एक नजर में ये केवल जादू की तरह लगता है। नारानाग से गंगाबल तक ट्रेक की दूरी लगभग 11 किलोमीटर की है जिसे पूरा करने में 8 घण्टे से ज्यादा का समय लगता है। इस जगह पर जल्दी से आपको कोई गाइड नहीं मिलेगा बल्कि खुद ही आपको जगहों का पता लगाना पड़ेगा। दूसरी सबसे बड़ी समस्या है खाने पीने की, यदि आप अपने साथ भारी मात्रा में भोजन नहीं लेकर आये तो आपको भोजन की कमी का सामना करना पड़ेगा क्योंकि पूरे इलाके में दुकान नहीं है। इस प्राचीन मन्दिर के संरक्षण को लेकर कई सामाजिक कार्यकर्ता आवाजें उठाते आये है लेकिन पुरातत्व विभाग और सरकार के प्रयासों में कमी के कारण मन्दिर को नुकसान पहुंचने का डर हमेशा लगा रहता है। क्योंकि इस प्राचीन मन्दिर ने कई राजाओं के राज के साथ ही क्लाईमेट में होने वाले बदलाव और प्राकृतिक आपदा का भी सामना किया है। 

 

कश्मीरी पण्डितों के लिए गंगाबल झील आस्था का केन्द्र है क्योंकि वो अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए उनकी अस्थियों का विसर्जन यहां पर ही किया करते थे और बाकी की पूजा अर्चना वो नारानाग मन्दिर में किया करते थे। प्राचीन नारानाग मन्दिर को यूनेस्कों की सूची में शामिल करने के लिए सर्वे का काम पूरा कर लिया गया है। एक दूसरे की ओर मुख किये हुये ये मन्दिर आज भी जीवन्त से दिखाई पड़ते है। इतिहास में रूची रखने वाले साथ ही एडवेंचर के लिहाज से टूरिस्टों का हमेशा आना जाना लगा रहता है क्योंकि यहां पर ट्रेकिंग के लिए बहुत अच्छा स्कोप है इसलिए ट्रेकिंग को अपना जज्बा समझने वाले टूरिस्टों के लिए ये जगह किसी वरदान से कम नहीं है।   

 

 कश्मीर अपने खुबसुरत नजारों के साथ ही अपने प्राचीन मन्दिरों की श्रृंखला के लिए भी आज दुनिया भर में प्रसिद्ध है लेकिन सरकार को भी ऐसे प्रयास करने चाहिए ताकि इस तरह के प्राचीन मन्दिरों के आस पास के इलाकों में मूलभूत सुविधाओं की ऐसी व्यवस्था की जाये ताकि यहां आने वाले टूरिस्टों को किसी भी तरह की समस्या का सामना न करना पड़े।