हाल ही में सरकार ने वाशिंगटन एप्पल पर लगने वाली इंपोर्ट ड्यूटी को 70% से घटाकर 50% करने का फैसला लिया है। जिसपर घाटी के फल उत्पादकों और डीलर्स ने नाराज़गी जताई। उन्हें डर है कि इंपोर्ट ड्यूटी के 20% घटने से मार्केट में वाशिंगटन एप्पल के इंपोर्ट में इज़ाफा होगा। जिसकी वजह से कश्मीर के सेबों की खपत पर ख़ासा असर पड़ेगा।
इसपर कश्मीर वैली फ्रूट ग्रोअर्स कम डीलर्स यूनियन के चेयरमैन, बशीर अहमद का कहना है कि मौजदा वक़्त में कश्मीर से 22 लाख टन सेब का उत्पादन होता है। जम्मू-कश्मीर के लगभग 70% घर सेब की फसल पर ही निर्भर हैं। यहां तक कि सेब इंडस्ट्री ही जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है।
घरेलू सेबों पर पड़ेगा असर
बशीर अहमद ने बताया कि वाशिंगटन एप्पल एक हाई क्वालिटी फ़सल है। 70% इंपोर्ट ने इसे अलग ही लीग में धकेल दिया, जहां यह भारतीय सेब की कीमतों का मुक़ाबला नहीं कर सका। हांलाकि इंपोर्ट ड्यूटी में कमी, बाजारों में घरेलू सेबों पर बुरा असर डालेगी।
घाटी के सेब उत्पदाकों और व्यापारियों ने बीते कुछ सालों में किसी न किसी कारण लगातार घाटे का सामना किया है। अब इस बार उन्हें डर है कि अगर इंपोर्ट ड्यूटी में 20% की कमी के फैसले को सरकार वापस नहीं लेती है तो उन्हें भारी नुकसान न झेलना पड़े।
सरकार से है ये मांग
बशीर अहमद ने कहा कि हम जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल, वित्तीय आयुक्त, कृषि उत्पादन विभाग से अनुरोध करते हैं कि घाटी के फल उत्पादक और व्यापारियों के हित में, वाशिंगटन एप्पल पर घटाई गई, इंपोर्ट ड्यूटी को तुरंत वापिस लेने के लिए भारत सरकार के संबंधित महकमे के सामने इस मुद्दे को उठाएं।
इस साल किसान और व्यापारी पहले से ही परेशान हैं। भारी बारिश की वजह से फलों को काफ़ी नुकसान हुआ है। बगीचों में पत्ते खाने वाले कीड़े और स्कैब जैसी कई बीमारियां भी पैदा हुई हैं।
क्या कहता है किसान?
सोपोर के सेब उत्पादक आमिर चाची बताते हैं कि, ये साल हमारे लिए बहुत परेशानी भरा रहा है क्योंकि हमें बहुत ज़्यादा नुकसान हुआ है। पिछले साल भी हमें फ़सल के वाजिब दाम नहीं मिले थे। सेब इंडस्ट्री बुरे दौर से गुज़र रही है और किसान संकट में हैं।
पिछले साल सितंबर में जब बांग्लादेशी सरकार ने कश्मीरी सेब पर लगने वाली एक्सपोर्ट ड्यूटी को 28% से भी ज़्यादा बढ़ा दिया था, तब भी किसानों ने अपनी नाराज़गी जताई थी।