Kashmiri Handicraft: दिल्ली में चल रहा दुनिया के सबसे बड़े सम्मेलन में से एक G-20 शिखर सम्मेलन. जिसक आयोजन देश की राजधानी दिल्ली (Delhi) के भारत मंडपम (Bharat Mandapam)में किया जा रहा है. इसी भारत मंडपम में देशभर के कलाकारों को उनकी कलाकारी के नमूने पेश करने का मौका मिला है. ऐसे में कश्मीर के हस्तशिल्पियों ने भी यहां के शिल्प बाजार में अपनी दुकानें सजाई हैं. यहां इन कलाकारों ने न सिर्फ दुकान सजाईं हैं बल्कि वे विदेशी महमानों को कश्मीर की कलाकारी की नुमाइश कर रहे हैं. इतना ही नहीं, ये कलाकार अपने हुनर प्रदर्शन कर महमानों के सामने ही सामान तैयार करके दिखा रहे हैं.
वहीं, भारत मंडपम में अपने हुनर की नुमाइश करने वाले रियाज अहमद खान ने भी अपनी एक दुकान सजाई है. रियाज बताते हैं कि G20 के इस आयोजन में जम्मू-कश्मीर के हस्तशिल्प कलाकारी को सामने रख पाना बेहद बड़ी बात है. इससे कश्मीर के लोकल हस्तशिल्पियों को काफी फायदा होगा और दुनिया में नई पहचान मिलेगी. आपको बता दें कि रियाज अहमद खान पेपरमाछी (Handicraft made out of Recycled Paper) के सामान बनाते हैं. उनका कहना है कि मैं रिसायक्लड कागज से ही अपने सामान बनाता हूं...
इसमें इस्तेमाल डिजाइन और रंग विदेशी महमानों (Foreign Deligates) को खूब पसंद आते हैं. ये हमारी खुशकिस्मती है कि कश्मीर के करीगरों को दिल्ली में अपने हुनर को दिखाने का मौका मिला है. रियाज अहमद खान ने बताया कि ऐसे बड़े आयोजनों में अपनी प्रदर्शनियों के जरीए बहुत से हस्तशिल्पियों को बहुत ज्यादा लाभ मिला है. रियाज बताते हैं कि ऐसे में विदेशी महमान उनके सामान को सीधे दुकान से खरीद सकते हैं या घर बैठे भी ऑनलाइन आर्डर कर सकते हैं. रियाज कहते हैं कि G20 Summit में आए विदेशी प्रतिनिधियों यहां न केवल भारत की बल्कि कश्मीर के हस्तशिल्पियों (Kashmiri Handicraft Artists) के हुनर का भी लुत्फ उठा सकते हैं. वे इन कारीगरों की कारीगरी को करीब से देख सकते हैं.
रियाज अहमद बताते हैं कि मैं इससे पहले भी कई मुल्कों में सामानों की प्रदर्शनी के लिए जा चुका हूं. आपको बता दें कि भारत सरकार ने भी रियाज अहमद खान को पेपरमाछी की कला को संरक्षित करने और उसके प्रोत्साहन के लिए अवार्ड से नवाजा है. वे बताते हैं कि विदेशी महमानों को भारत की पेपर माछी की कला बेहद पसंद है. दरअसल, भारतीय पेपरमाछी की कला कश्मीर में 14वीं सदी में विकसित होना शुरू हुई. माना जाता है, इस कला को इरान से आए मुस्लिम सूफी संत मीर सैयद अली हमदानी ने ही आगे बढ़ाने के लिए कश्मीरियों तक पहुंचाया था.