Jammu and Kashmir : अब्दुल्ला फैमिली के किसी भी मेंबर द्वारा चुनाव न लड़ने के बाद, श्रीनगर लोकसभा सीट का चुनाव जरा बदल गया है. वहीं, महबूबा मुफ्ती की PDP इलाके में काफी जोश के साथ चुनाव प्रचार करती नजर आ रही है. ऐसे में लोगों का सवाल है कि क्या PDP श्रीनगर लोकसभा सीट पर 2014 के अपने प्रदर्शन को दोहरा पाएगी ? इस बार, श्रीनगर सीट पर पीडीपी ने वहीद उर रहमान पर्रा को मैदान में उतारा है.
बता दें कि हमेशा से ही घाटी की हॉट सीट या VIP सीट कहे जाने वाली, श्रीनगर लोकसभा सीट पर नेशनल कॉन्फ्रेंस और PDP की ओर से कोई बड़ा चेहरा चुनावी मैदान में नहीं है.
नेशनल कॉन्फ्रेंस की बात करें तो, साल 1998 के बाद पहली बार इस सीट से अब्दुल्ला फैमिली का कोई मेम्बर चुनाव नहीं लड़ रहा है. हालांकि, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपनी इस सीट से आगा सैयद रुहूल्ला मेहदी को अपना उम्मीदवार बनाया है.
गौरतलब है कि 1967 से लेकर 2019 तक नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अब तक सिर्फ दो बार अपना उम्मीदवार नहीं उतारा. 1971 में पार्टी ने निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन किया, जबकि 1996 में कांग्रेस ने यहां से जीत हासिल की ..
श्रीनगर लोकसभा सीट नेशनल कॉन्फ्रेंस का मजबूत गढ़ और अब्दुल्ला फैमिली की पारंपरिक सीट मानी जाती है. तीन पीढ़ियों से इस सीट पर अब्दुल्ला फैमिली का कब्जा रहा है. 2014 के लोकसभा इलेक्शन को छोड़ दें तो नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जब भी इस सीट से अपना उम्मीदवार उतारा उसे जीत हासिल हुई है.
2014 में फारूक अब्दुल्ला को पीडीपी उम्मीदवार तारिक अहमद कर्रा से शिकस्त खानी पड़ी थी. हांलाकि 2014 में ही असेंबली इलेक्शन में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जिले की 8 में से 5 सीटों पर दर्ज हासिल कर शानदार वापसी भी की थी. बुरहान वानी की मौत के बाद वादी में हुए दंगों में आम शहरियों की हत्या को लेकर तारिक अहमद कर्रा ने इस्तीफा दे दिया था. नतीजन 2017 में एक बार फिर चुनाव हुए और इस बार जीत हासिल कर, फारूक अब्दुल्ला दोबारा सांसद पहुंच गए.
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी फारूक अब्दुल्ला ने श्रीनगर सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा. फारूक अब्दुल्ला ने 1980 में भी इस सीट से जीत हासिल की थी. उससे पहले उनकी वालिदा बेगम अकबर जहां ने यहां से 1977 का लोकसभा चुनाव जीता था.
परिवार की इस रवायत को उमर अब्दुल्ला ने भी कायम रखा. 1998 से 2009 तक उमर अब्दुल्ला यहां से तीन बार लोकसभा सांसद रहे. 1996 में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस सीट से अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था. तब कांग्रेस ने ये सीट जीती.
गौरतलब है कि 1971 में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने निर्दलीय उम्मीदवार शमीम अहमद का समर्थन किया था. जिसकी वजह से वो जीत हासिल करने में कामयाब रहे.
अब देखना ये है कि पीडीपी उम्मीदवार वहीद उर रहमान पर्रा, नेशलन कॉन्फ्रेंस के सैयद रुहुल्ला मेहदी को शिकस्त दे पाते हैं या नहीं. या इस सीट पर नेशनल कॉन्फ्रेंस का दबदबा कायम रहता है...
बीते तीन दशकों से श्रीनगर सीट पर आम तौर पर वोटिंग प्रसेंटेज काफी रहता आया है. लेकिन साल 2019 में श्रीनगर लोकसभा सीट पर सिर्फ 14 फीसद वोटिंग हुई थी. हालांकि, इस बार चुनाव को लेकर लोगों में जो जोश खरोश देखा जा रहा है उससे इस बार ये आंकड़ा बदलने की पूरी उम्मीद है...