JK Assembly Election 2002 : साल 2002 के असेंबली चुनाव ने बदला घाटी का सियासी गणित, पीडीपी बना तीसरा पॉवर सेन्टर !

Written By Vipul Pal Last Updated: Oct 03, 2024, 01:53 PM IST

Jammu and Kashmir : जम्मू कश्मीर की सियासत में शुरूआत से ही नेशनल कॉन्फ्रेंस एक मजबूत सियासी ताकत रही है. लेकिन साल 2002 के असेंबली इलेक्शन में पहली बार उसका सपोर्ट बेस दरकता नजर आया. 1996 के इलेक्शन में जीती हुई पचास फीसद से ज्यादा सीटों पर पार्टी को शिकस्त का सामना करना पड़ा. यही वजह है कि बहुत से सियासी एक्सपर्ट इस चुनाव को नेशनल कॉन्फ्रेंस के सियासी ज़वाल का नुक्त ए आग़ाज  मानते हैं. 

बता दें कि 2002 का असेंबली चुनाव 26 सितंबर से 8 अक्तूबर के बीच कुल चार चरणों में हुआ था. पहली बार चुनावी मैदान में उतरी पीडीपी को 16 सीटों पर जीत हासिल हुई. साउथ कश्मीर के अलावा पीडीपी को सेंट्रल कश्मीर में भी खास कामयाबी मिली.

PDP तीसरी सबसे बड़ी पार्टी

साल 2002 का असेंबली चुनाव जम्मू कश्मीर के बदलते सियासी मिज़ाज की अक्कासी करने वाला इलेक्शन साबित हुआ. कश्मीर में पहली दफा किसी इलाकाई पार्टी ने नेशनल कॉन्फ्रेंस की सियासी रसूख को चैलेंज किया. यह पार्टी थी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी. जिसकी शुरूआत कांग्रेस से अलग होकर मुफ्ती मोहम्मद सईद ने की थी. इस इलेक्शन के बाद वो इक्तेदार का तीसरा पावर सेंटर बन चुके थे. पहली ही कोशिश में 9.26 फीसद वोट हासिल कर पीडीपी 16 असेंबली सीटों पर कामयाब हुई.  

गौरतलब है कि 2002 में जम्मू कश्मीर में कुल रजिस्टर्ड वोटर्स की तादाद 60,78,570 थी. जिसमें से 43.70 फीसद वोटर्स ने अपने वोट का इस्तेमाल किया. इनमें से पीडीपी के हक में 2 लाख 46 हजार 480 वोट पड़े. 

वहीं, 29 सीटों और वोट शेयर में साढ़े 6 फीसद की गिरावट के बावजूद, नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए इत्मेनान की बात सिर्फ ये थी कि सूबे की सबसे बड़ी पार्टी का टैग उसके पास महफूज था. 28.24 फीसद वोट लेकर नेशनल कॉन्फ्रेंस ने सबसे ज्यादा 28 सीट पर जीत हासिल की. कुल पड़े वोटों में नेशनल कॉन्फ्रेंस को तकरीबन साढे सात लाख वोट मिले.  

पीडीपी के अलावा कांग्रेस भी जरबदस्त फायदे में रही. 1996 के मुकाबले कांग्रेस को 13 सीटों का फायदा हुआ. उसके वोट फीसद में भी 4.24 फीसद का इज़ाफा हुआ. कांग्रेस के हक में टोटल टर्नआउट का 24.24 फीसद यानी 6 लाख 43 हजार 751 वोट पड़ा. इसके अलावा, जम्मू रीजन में JK नेशनल पैंथर्स पार्टी भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में कामयाब रही. 3.83 फीसद वोट लेकर चार असेंबली सीटों पर पैंथर्स पार्टी के उम्मीदवार कामयाब हुए. 

आपको बता दें, इस इलेक्शन की खास बात ये थी कि इसमें 13 निर्दलीय उम्मीदवार कामयाब हुए. अलहेदगी पसंदों के बायकॉट के एलान के बावजूद ये इलेक्शन पूरी तरह पुरअमन, शफ्फ़ाफ और गैरजानिबदाराना तरीके से अंजाम पाया. वोटर्स ने बैलेट को बुलेट पर तरजीह देकर शिद्दत पसन्दों का करारा जवाब दे दिया था. आलमी बिरदारी की तरफ से भी इलेक्शन कमीशन और हुकूमत की काफी सराहना की गई. इलेक्शन बाद पीडीपी और कांग्रेस ने मिलकर हुकूमत बनाई. जिसे पैंथर्स पार्टी का समर्थन हासिल हुआ. 

गठबंधन की शर्त के तहत पहले तीन साल के लिए मुफ्ती मोहम्मत सईद वजीर आला बने. कैबिनेट में पैंथर्स पार्टी को भी जगह मिली और हर्षदेव सिंह जम्मू कश्मीर सरकार में जेके नेशनल पैंथर्स पार्टी के पहले मंत्री बने. तीन साल बाद गुलाम नबी आज़ाद ने सीएम पद की शपथ ली. साढ़े पांच साल से ज्यादा वक्त तक हुकूमत बेहद कामयाबी से चलती रही. लेकिन असेंबली की मुद्दतेकार पूरी से ऐन पहले पीडीपी ने सरकार से अलग होने का एलान कर दिया...