Jammu and Kashmir : वादी-ए-कश्मीर में इस साल मौसम काफी उम्मीद से अलग रहा. जिसकी वजह से जाफरान की पैदावार प्रभावित होने का अनुमान है. दरअसल, पुलवामा जिले के पम्पोर में केसर की सबसे ज्यादा खेती होती है. यहां की अक्सरियत बिलवास्ता और बिला वास्ता इसकी खेती से वाबस्ता है.
इलाके में रहने वाले लोगों का गुजर बसर केसर की पैदावार पर ही निर्भर है. आलमी मार्केट में कश्मीरी ज़ाफ़रान की सबसे ज्यादा डिमांड होती. यही वजह है कि दीगर मोमामिलक के बनिस्बत कश्मीरी केसर ज्यादा कीमती होता है.
बता दें कि कश्मीरी केसर की खास बात ये है कि इसकी खेती समुद्र की सतह से तकरीबन पांच हजार फीट की ऊंचाई पर की जाती है. खाने पीने की चीजों से लेकर दवाओं और कॉस्मेटिक प्रोडेक्ट में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.
हर साल जुलाई-अगस्त महीने के बीच इसकी बुआई की जाती है. यह ऐसी फसल है जिसके लिए खाद की जरूरत नहीं पड़ती. इसकी पैदावार के लिए बारिश काफी जरूरी है. अक्तूबर और नवंबर में खेतों में केसर के फूल खिलने लगते हैं लेकिन कम बारिश के चलते किसानों को इस बार नुकसान का डर सताने लगा है.
किसानों ने सरकार से मांग की है कि खेतों में सिंचाई के लिए पानी का इस्तेमाल किया जाए. किसानों को इस बात की भी शिकायत है कि नेशनल सैफरन मिशन का उन्हें पूरी तरह फायदा नहीं मिल रहा है...