Jammu and Kashmir : आज़ादी के बाद से ही अब्दुल्ला फैमिली जम्मू कश्मीर की सियासत का केंद्र रही है. नेशनल कॉन्फ्रेंस की कमान इस वक्त खानदान की तीसरी पीढ़ी के हाथों में है. नब्बे की दशक में भारतीय सियासत के उफक पर जो नए चेहरे उभरे उनमें उमर अब्दुल्ला सबसे खास रहे. सियासत उनके लिए कोई नई चीज़ नहीं थी. ये उन्हे विरासत में मिली थी. लेकिन उन्होंने जिन्दगी की शुरुआत किसी इलीट खानदान के एक आम नौजवान जैसे ही की. इंग्लैंड से कॉमर्स और इकोनॉमिक्स से ग्रेजुएशन करने के बाद वो ITC और ओबराय ग्रुप के साथ जुड़ गए इस बीच उन्होंने एमबीए में भी दाखिला लिया. लेकिन फारूक अब्दुल्ला और पार्टी की सीनियर कमान कुछ और सोच रही थी.
उमर अब्दुल्ला महज 28 साल की उम्र में 12 वीं लोकसभा के लिए श्रीनगर सीट से एमपी चुने गए. 1999 में वो लगातार दूसरी बार सांसद चुने गए. 13 अक्तूबर 1999 को उन्हें कॉमर्स एंड इंडस्ट्री का स्टेट मिनिस्टर की शपथ ली. साल 2001 में NDA गवर्नमेंट में विदेश मंत्रालय में वजीर मुमलेकत बनाया गया. मुल्क के वो सबसे कम उम्र के स्टेट फॉरन मिनिस्टर थे.
साल 2002 में फारूक अब्दुल्ला ने अपनी सियासी विरासत उमर अब्दुल्ला को सौंप दी. वजारत से इस्तीफा देकर 23 जून 2002 को उन्हे नेशनल कॉन्फ्रेंस का अध्यक्ष बना दिया गया. मुल्की सियासत से जम्मू कश्मीर जाने का फैसला पहली कोशिश में नाकाम साबित हुआ. 2002 असेंबली इल्केशन में उन्हे गांदरबल में शिकस्त खानी पड़ी. 2004 में भी उन्होंने श्रीनगर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और कामयाब रहे. 2006 में उन्हे दोबारा पार्टी अध्यक्ष घोषित किया गया.
2006 में उमर अब्दुल्ला ने उस वक्त के पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ से इस्लामाबाद में मुलाकात की. जम्मू कश्मीर के मेनस्ट्रीम के किसी सियासतदां की किसी पाकिस्तानी लीडर के साथ ये पहली दोतरफा मीटिंग थी. 2008 में उन्होंने दोबारा असेंबली चुनाव लड़ा और उनकी अगुवाई में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने सबसे ज्यादा सीट जीतने में कामयाबी हासिल की और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई.
5 जनवरी 2009 को उन्हे जम्मू कश्मीर के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड हासिल हुआ. पीडीपी-बीजेपी हुकूमत में वो अपोजीशन लीडर रहे. आर्टिकल 370 की मंसूखी के एलान से ठीक पहले ही उन्हे दफा 107 और फिर पीएसए के तहत गिरफ्तार किया गया.
वहीं, 24 मार्च 2020 को उन्हें रिहाई मिली. रिहाई के बाद से ही उमर सेंट्रल और स्टेट की पॉलिटिक्स में तवाजुन बनाए हुए हैं. फिलहाल पार्टी में उपाध्यक्ष का ओहदा उनके पास ही है. इस असेंबली इलेक्शन में उमर अब्दुल्ला ने अपनी पूरी ताक़त झोंकी और नतीजन, बडगाम और गांदरबल, दों सीटों पर जीत हासिल की. और जम्मू सरकार में नई सरकार बनने के साथ ही उमर अब्दुल्ला दूसरी बार मुख्यमंत्री का ओहदा संभालने के लिए तैयार हैं...