Jammu and Kashmir : जम्मू कश्मीर की नई सरकार 2009 से 2014 वाली नहीं है. 10 साल में न सिर्फ रियासत का भूगोल बदल गया, बल्कि इतिहास में भी कई नए पन्ने जुड़ चुके हैं. उस सरकार के पास तमाम अधिकार थे. लद्दाख उसका हिस्सा था. आज जम्मू-कश्मीर ही नहीं, लद्दाख भी अलग यूनियन टेरिटरी है. इसी से सरकार की सीमाएं भी तय होती हैं.
देखा जाए तो एलजी के पास कई मायने में सीएम से ज़्यादा पावर्स हैं. सीएम के तौर पर उमर न तो अपनी पसंद के अफसरों को तैनाती दे सकते हैं, न ही न सुनने वाले अफसरों के तबादले कर पाएंगे. होम मिनिस्ट्री पर भी उनका कोई दखल नहीं रहेगा. उमर को एलजी के दस्तख़त का इंतज़ार करना पड़ेगा, कई मामलों में तो उन पर इनहेसार करना पड़ सकता है. उन्होंने स्टेटहुड का दर्जा बहाल करने से लेकर मुफ्त बिजली और महिलाओं को नकदी समेत कई ऐसे वादे किए हैं, जिन्हें केंद्र की मदद के बिना पूरे कर पाना मुश्किल है.
उमर अब्दुल्ला के पिछले दौर में नेशनल कॉन्फ्रेंस का समर्थन करने वाली कांग्रेस केंद्र में काबिज थी. आज केंद्र में उनकी सख़्त विरोधी पार्टी बीजेपी है, जिसके एजेंडे को चुनौती देकर उमर मैनडेट लेकर आए हैं. भाजपा ने आर्टिकल 370 व 35ए ख़त्म करने के मुद्दे पर इलेक्शन लड़ा. उमर इसकी बहाली के वादे पर जीते हैं. ऐसे में, उमर सरकार की राह उतनी आसान नहीं होने जा रही, जितनी पिछली बार थी...
बता दें कि नेशनल कॉन्फ्रेंस पर जम्मू के लोगों के अधिकारों की अनदेखी का इल्ज़ाम लगता रहा है. NC का जम्मू रीजन में एनसी का ज़वाल इसका सबूत है. नेशनल कांफ्रेंस ने 90 सीटों में से 42 सीटें जीती हैं. लेकिन, इसमें सिर्फ सात सीटें ही जम्मू रीजन की हैं. जम्मू में भाजपा का दबदबा है. ऐसा लगता है कि उमर सरकार जम्मू को नज़रअंदाज़ करने की तोहमत छुड़ाने के लिए पहले दिन से काम कर रही है. उमर ने भाजपा प्रदेशाध्यक्ष रविंद्र रैना को हराने वाले सुरिंदर चौधरी को डिप्टी सीएम बनाया. साथ ही, जम्मू रीजन को 6 मेम्बर वाली कैबिनेट में तीन मेम्बरान के साथ आधी हिस्सेदारी दी है.
इसके अलावा, कैबिनेट में दो ग़ैर मुस्लिम वज़ीरों को शामिल किया है. मायने साफ हैं कि नेशनल कॉन्फ्रेंस बीजेपी को सियासी तौर पर कोई मौका नहीं देना चाहती है. सुरिंदर चौधरी को डिप्टी सीएम बनाकर उमर ने इशारा दिया है कि सरकार का फोकस जम्मू पर बना रहने वाला है...