कश्मीर की अनूठी रस्म, लड़की को लड़के वाले देते हैं दहेज़ की रक़म

Written By Tahir Kamran Last Updated: Aug 22, 2022, 11:00 AM IST

Kashmir Wedding Rules: जहां एक तरफ़ लड़की की शादी को बोझ समझा जाता है. सुई धागे से लेकर बिस्तर, साज-सज्जा और रसोई तक की चीज़ों को दहेज़ के तौर पर दिया जाता है. इसके अलावा बारात की मेज़बानी करना, बारात का आलीशान इंतेज़ाम करना, खाना-पीना, रस्में वगैरह. हालांकि दहेज़ लेना और देना सख्त मना है इसके बावजूद अभी भी कई जगहों पर दहेज़ लिया और दिया जाता है लेकिन क्या आप जानते है अपने ही मुल्क में एक ऐसी जगह भी है जहां लड़की वालों का 1 रुपया भी ख़र्च नहीं होता है. जिसमें दहेज़ तो छोड़िए यहां तक की बारात का इस्तक़बाल और खाने पीने तक का इंतज़ाम भी लड़के वाले ही करते हैं.

क़ानून का सख़्ती से होता है पालन

ये कड़ा क़ानून कश्मीर के गांदरबल ज़िले में हरमुख की हसीन पहाड़ियों के दामन में बसे एक ख़ूबसूरत गांव बाबवाइल का है. जो कि पूरे जम्मू-कश्मीर में अपने इस नियम के चलते जाना जाता है. बता दें कि इस गांव के लिखित दस्तावेज़ के तहत शादी तय होने का बाद लड़के वालों को लड़की के घर वालों को 50 हज़ार रुपये देने होते हैं. इस रक़म में से 20 हज़ार रुपये दुल्हन की मेहर के तौर पर होते हैं. बाकी बचे 30 हज़ार रुपयों में से 20 हज़ार दुल्हन के कपड़े, जूतों वगैरह के ख़र्च के लिए होते हैं और 10 हज़ार रूपयों की रक़म को बारात में आए मेहमानों की मेज़बानी पर ख़र्चे के लिए दिए जाते हैं. अब आप सोच रहे होंगे की बारात का ख़र्चा इतनी कम रक़म में कैसे हो सकता है? आपको बता दें कि इन नियमों के साथ एक और नियम है कि बारात में 4 लागों से ज़्यादा नहीं जा सकते हैं. साथ ही बनाए गए इन नियम-क़ानून का सख़्ती से पालन करना होता है.

इस घटना के बाद बना ये नियम

गांव के सरपंच मुहम्मद अल्ताफ़ अहमद शाह बताते हैं कि साल 1990 से पहले यहां ये नियम नहीं था. बाबवाइल में पहले दहेज़ लेना और देना आम बात थी. साल 1991 में गांव में घरेलू हिंसा का पहला मामला सामने आया था. जिसमें एक पति अपनी पत्नी से मायके वालों से पैसों की मांग करने को कहता है लड़की के मना करने पर उसकी बेरहमी से पिटाई कर दी थी. ये मामला अदालत तक पहुंच गया था. इस घटना से गांव का नाम बहुत ख़राब हुआ था साथ ही गांव वालों के दिलों पर एक गहरी छाप छोड़ दी थी. उसी दिन पंचायत ने ये फै़सला लिया कि आज के बाद से न कोई दहेज़ लेगा और न देगा. अल्ताफ़ बताते हैं कि इसके लिए सबकी मंज़ूरी ली साथ ही लिखित दस्तावेज़ पर सभी लोगों के दस्तखत भी लिए गए थे.