इस तरह होती है कश्मीरी पंडितों की शादी, रिवायती नाच गानों से जमती है महफ़िल

Written By Tahir Kamran Last Updated: Apr 20, 2023, 02:57 PM IST

Kashmiri Wedding Ceremony: कश्मीर की शक़ाफ़त सबसे अलग है. यहां हर मज़हब और ज़ात बिरादरी के लोग अपने रीति रिवाज़ों के साथ शादी करते हैं लेकिन यहां कश्मीरी पंडित ख़ास तरह से शादी करते हैं. इस ख़बर में हम बात करेंगे कश्मीरी पंडितों की शादी और शादी में निभाए जाने वाली रस्मों की.

कश्मीरी पंडितों में शादियां बाकी हिंदुओं की रस्मों जैसी ही होती हैं, लेकिन शादी में कुछ इलाकाई तहज़ीब और परंपरा का असर होने की वजह से इसे थोड़ा अलग बनाती है. कश्मीरी शादी की रस्में बहुत ही अनोखी और मज़ेदार होती हैं. कश्मीरी शादियों की शुरुआत सगाई से होती है जिसे कासमसुखा, कासमड्री या वन्ना समारोह कहते हैं. 

कश्मीर के ज्योतिषाचार्य कैलेंडर के मुताबिक एक तारीख तय की जाती है. जिसके बाद लड़का और लड़की के घर वाले किसी मंदिर में मिलकर एक साथ पूजा अर्चना करते हैं. कासमसुखा के बाद दूल्हा-दुल्हन के घरों को ताज़े फूलों से सजाया जाता है जिसे क्रोल खानून कहते हैं.

रिवायती नाच गानों की धूम


क्रोल खानून वाले दिन घर में खाना बनाया जाता है. जिसे वाज़ा प्रोग्राम के तौर पर मनाया जाता है. जिसमें ईंट और मिट्टी के चूल्हे पर वुवी नाम का पकवान बनाया जाता है. इसके अलावा शादी के बाकी दिनों में भी उसी चूल्हे पर खाना बनाया जाता है. इसके अलावा कश्मीरी पंडितों में शादी वाले दिन तक हर रोज़ संगीत का प्रोग्राम रखा जाता है. जिसे वानवुन कहते हैं. इसी शाम से दूल्हा-दूलहनों के घरों पर मेहमानों का आना शुरू हो जाता है और हर शाम कश्मीर के रिवायती गानें गाए जाते हैं साथ ही रिवायती डांस से महफिल में चार चांद लगाए जाते हैं.

शीशे में देखते हैं दूल्हा-दुल्हन एक दूसरे का चेहरा


इसी के साथ शादी में अनगिनत रस्में निभाई जाती हैं. जिनमें मेनज़ीरत, स्नाजरू, दिवागोन, कानिसरन और दुरीबत जैसी कई रस्मों को निभाया जाता है. तमाम रस्मों को निभाकर दूल्हा बारात लेकर जब लड़की के चौखट पर पहुंचता है तो उसका एक आलीशान स्वागत किया जाता है.  शंखनाद के साथ दूल्हे को मंडप तक लाया जाता है. वहीं दुल्हन को मंडप तक उसके मामा लेकर आते हैं. शादी होने से पहले तक दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे को देख नहीं पाते क्योंकि दोनों के सिर ढकना लाज़मी है. तभी दोनों के पास एक शीशा रखा जाता है जिसमें वह एकदूसरे का चेहरा देख सकते हैं. यहीं पर लगन की रस्म की जाती है. जिसे लगन कामिलरी कहा जाता है. 

लगन की रस्म के बाद दुल्हन के पिता बेटी के हाथ को दूल्हे के हाथ पर रख कर अपनी बेटी को सौंपते हैं. इस दौरान अथवास नाम का एक खास कपड़ा दोनों के हाथों को ढके रखता है. दोनों के माथे पर मननमल नाम का एक सुनहरा धागा बंधा होता है जिसे काफी पाक माना जाता है. इसके बाद दोनों सात फेरों के साथ शादी के रीति रिवाज़ों को पूरा कर, हमेशा एकदूजे के हो जाते हैं.