Jammu and Kashmir: खुली फिजाओं में फैशन शो (Fashion Show) बदलते कश्मीर की एक नई तस्वीर है. आम तौर पर फाइव स्टार होटल्स और एयरकंडीशन हॉल में होने वाले फैशन शो आम जनता की आखों ले दूर होते हैं. ऐसे में, बुधवार को साउथ कश्मीर आर्ट्स एंड ड्रामा स्कूल और इंडियन आर्मी ने एक फैशन शो को ओपन थिएटर जैसा प्रोग्राम बना दिया. दरअसल, घाटी में चिल्लई कलां के मौके पर एक फेरन फैशन शो का आयोजन किया गया था. इस फैशन शो में मॉडलिंग में करियर तलाश कर रहे नौजवान लड़के और लड़कियों ने हिस्सा लिया.
चिल्लई कलां में फैरन जरूरी
आपको बता दें कि 21 दिसंबर को कश्मीर में फेरन डे के तौर पर मनाया जाता है. चिल्लई कलां का पहला मरहला इसी दिन से शुरू होता है. जोकि चालीस दिनों तक जारी रहता है. इन चालीस दिनों में सर्दी से खुद को महफूज़ रखने का ये सबसे मुअस्सर जरिया है. ऐसे में बुधवार को सुर्ख क़ालीन पर बने रैंप पर मॉडल्स ने अलग अलग किस्म के फेरन में कैट वॉक किया. फैशन शो का मेन अट्रैक्शन मुख्तलिफ स्कूल और कॉलेज की लड़कियां रहीं.
गाउन जैसी दिखती फैरन पोशाक
गौरतलब है कि कश्मीर और चिनाब की कंपकपा देने वाली ठंड से बचने के लिए मकामी मर्द और ख्वातीन फेरन का इस्तेमाल करते हैं. कश्मीरी जबान में इसे पीरन भी कहते हैं. फेरन कश्मीर घाटी की रवायती पोशाक है. खालिस ऊन के बने फेरन के ऊपर की गई कशीदाकारी इसे और भी जाज़िब-ए-नजर बनाती है.
दिलचस्प बात ये है कि गाउन जैसी दिखने वाली ये पोशाक पैरों तक फैली होता है. इसमें दो गाउन होते हैं. इसे इस तौर पर तैयार किया जाता है कि इसमें कांगड़ी भी रखा जा सके. अपने रवायती लिबास को आम पब्लिक के सामने ले जाने का मौका मिलने पर मॉडल्स काफी खुश दिखाई दिए. उन्होंने इसके इवेंट के लिए भी ऑर्गनाइजर्स का शुक्रिया अदा किया.
कहां से हुई फैरन की शुरूआत?
कश्मीर में फेरन की शुरूआत को लेकर अलग अलग राय पाई जाती है. कुछ इसे 1586 में मुगल बादशाह अकबर से जोड़ते हैं जबकि बहुत से लोगों का मानना है कि इसकी शुरूआत 15वीं सदी से पहले ही हो गई थी. तारीख जो भी कहे, लेकिन इतना तय है कि ये सेंट्रल एशिया का पहनावा है. फारसी का लफ्ज़ ही बिगड़ कर कश्मीर में फेरन, फिरन या पीरन बन गया. वहीं, आज फैशन शो में शामिल लड़कियों ने इसका पूरा लुत्फ उठाया.
अनंतनाग में हुआ फैशन शो
उससे भी खास बात ये है कि इस फैशन शो का इनेकाद साउथ कश्मीर के अनंतनाग जिले में किया गया. जो कभी दहशतगर्दी, एनकाउंटर, पथराव के लिए जाना जाता था. कश्मीरी नवजवानों में करियर के तौर पर जो नए नए इमकानात पैदा हो रहे हैं. उनमें मॉडलिंग का ग्राफ भी तेजी से बढ़ रहा है. मॉडल्स ने नौजवानों को सलाह दी कि नशा और दूसरी बुरी आदतों में पड़ कर अपनी और घर वालों के लिए शर्मिंदगी का बाइस न बनें.
कल्चरल प्रोग्राम से इवेंट खत्म
इस हवाले से फैशन शो के साथ ही कल्चरल प्रोग्राम का एहतेमाम किया गया. जिसमें जिस्मानी तौर पर माजूर बच्चियों ने भी हिस्सा लिया. इन प्रोग्राम के जरिए न सिर्फ मंशियात को लेकर बेदारी पैदा की गई बल्कि नौजवानों में कश्मीरी तहजीब सकाफत को जिंदा रखने की भी तरगीब दी गई. एक्ट्स के अलावा इस मौके पर मकामी नौजवानों ने मार्शल आर्ट्स में भी अपना महारात का मुजाहिरा किया. ये पूरा प्रोग्राम आज के नए कश्मीर की अक्कासी करता है. ये इस बात का पहचान है कि आज का कश्मीरी नौजवान बाहमी तसादुम, मजहबी और लिसानी तअस्सुब से उपर उठकर अमन और खुशहाली की राह पर चल पड़ा है.