Jammu and Kashmir : जम्मू कश्मीर में 2024 का असेंबली इलेक्शन कई लिहाज़ से पिछले तमाम असेंबली चुनावों से अलग रहा है. सबसे खास बात तो यही थी कि जम्मू कश्मीर का स्पेशल स्टेटस खत्म होने के बाद ये पहला असेंबली चुनाव था.
इसके अलावा यह पहला मौका है जब दो असेंबली के गठन के बीच इतना लंबा गैप रहा. बता दें कि 1934 में प्रजा सभा से लेकर 2014 के लेजिस्लेटिव असेंबली के दरमियान सिर्फ एक मौका ऐसा आया जब दूसरी असेंबली के गठन में 9 साल का वक्त लग गया.
इस इलेक्शन की दिलचस्प, बात ये रही कि इस बार किसी पार्टी ने मुख्यमंत्री के तौर पर किसी का चेहरे सामने नहीं किया. अब तक रहे घाटी के चार पूर्व सीएम में से तीन फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और गुलाम नबी आज़ाद तो चुनाव मैदान में ही नहीं उतरे. चौथे आला उमर अब्दुल्ला इलेक्शन को लेकर काफी दुविधा में रहे लेकिन जब मन बनाया तो दो-दो जगह से उम्मीदवारी पेश कर दी. जिन लोगों ने इलेक्शन लड़ा उनमें मुमकेना सीएम के तौर पर उमर अब्दुल्ला की दावेदारी सबसे मजबूत हो सकती है.
दूसरे दावेदार नौशेरा से चुनाव लड़ रहे बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष रविन्द्र रैना हैं. चुनाव प्रक्रिया के बीच ही पार्टी की आला कमान ने इसका इशारा भी दे दिया. लेकिन बाज़ाब्ता तौर पर बीजेपी ने उन्हे भी सीएम के तौर पर पेश नही किया. लेकिन दोनों की दावेदारी अनुमान के जुमरे में शामिल है. इनके बीच कई इफ्स एंड बट्स हैं. ये अनुमान उसी वक्त हकीकत का रूप लेंगे जबकि आठ अक्टूबर को एनसी-कांग्रेस गठबंधन और बीजेपी को पूर्ण बहुमत हासिल हो. एनसी - कांग्रेस गठबंधन का दावा कि 8 अक्तूबर को उन्हे पूर्ण बहुमत मिलने जा रही है.
बीजेपी की प्रदेश कमान भी आत्मविश्वास से भरी हुई है. आखिरी चरण की वोटिंग के बाद बीजेपी खेमे में खुशी का माहौल है. पीएम मोदी ने तो तीसरे चरण की वोटिंग से पहले ही जम्मू कश्मीर में पहली बार बीजेपी की हुकूमत बनने का यकीन जाहिर कर दिया है.
2024 से पहले जम्मू कश्मीर में आखिरी सरकार महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व में ही बनी थी. उस वक्त पीडीपी सबसे बड़ी पार्टी थी. लेकिन इस चुनाव में उसकी पोजीशन कमजोर दिख रही है. यही वजह है कि महबूबा मुफ्ती ने चुनाव प्रचार के दौरान इक्तेदार की बात नहीं की. लेकिन उनका दावा है कि हुकूमत सेक्युलर ताकतों की होगी और सत्ता की चाभी पीडीपी के पास होगी.
अगर ये दावे गलत साबित हुए तो फिर क्या होगा ? नई सरकार की शक्ल कैसी होगी ? सरकार बनाने के लिए जरूरी नंबर कहां से आएगा ? जाहिर है ऐसी सूरत में ये देखना दिलचस्प हो जाएगा कि कौन किसके साथ जाता है ? इन हालात में छोटी छोटी स्थानीय पार्टियां और निर्दलीय उम्मीदवार भी निर्णायक भूमिका में आ जाएंगे. 2024 का असेंबली इलेक्शन इस लिहाज़ से खास रहा है कि माजी में इलेक्शन बॉयकॉट करने और अलगाववाद की बात करने वाले भी इसका हिस्सा बने. जम्मू कश्मीर की ममनूआ तंजीम जमाअत ए इस्लामी और अलहेदगी पसंद लीडर और बारामूला के सांसद इंजीनियर रशीद की पार्टी अवामी इत्तेहाद पार्टी के लोग आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर कई सीट से इलेक्शन लड़ रहे हैं. इसके अलावा, गुलाम नबी आज़ाद, अल्ताफ बुखारी और सज्जाद गनी लोन जैसे मंझे हुए सियासी नेताओँ को भी इग्नोर नहीं किया जा सकता, जिनके उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं. सवाल यही है कि एनसी-कांग्रेस गठबंधन और बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिली तो अपनी पार्टी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी किधर होंगे ?
अनुमान नंबर 1
अगर बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता और नतीजों के एलान के बाद वो सबसे बड़ी जमाअत बन कर उभरी तो एलजी उसे सरकार बनाने की दावत दे सकते हैं. लेकिन सवाल ये है कि 370 के विरोध में चुनाव लड़ने वाली बीजेपी 370 का समर्थन करने वाली पार्टियों को कैसे और किन शर्तों पर साधेगी. साबिका तजुर्बों की रौशनी में पीडीपी-बीजेपी गठबंधन को खारिज नहीं किया जा सकता. कांग्रेस इस मुद्दे पर खामोश रही. सियासत का एक मुरव्वजा उसूल है कि ये इमकानात का नाम है लेकिन बीजेपी कांग्रेस का एक साथ आना फिलहाल नामुमकिन है.
अनुमान नंबर 2
एनसी-कांग्रेस गठबंधन बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आए तो तस्वीर और भी दिलचस्प होगी. कश्मीर की सभी सियासी पार्टियों ने खुद को नेशनल कॉन्फ्रेंस के विरोधी (competitor) के तौर पर ही पेश किया है. पीडीपी का वजूद ही इसी लिए हुआ. बाद में अल्ताफ बुखारी और मुजफ्फर बेग जैसे लोग पीडीपी से भी अलग होकर अपनी नई राह चुन ली. सज्जाद गनी लोन और इंजीनियर रशीद भी एनसी को रिप्लेस करना चाहते हैं. इनमें एक चीज कद्रे मुश्तरक ये है कि सभी 370, स्टेटहुड और दीगर मुद्दों पर मुत्तफिक हैं . एनसी और पीडीपी की सियासी राहें जुदा हैं बावजूद इसके पीडीपी -एनसी बीजेपी विरोधी के नाम पर एक साथ आ सकते हैं. इस मामले को लेकर अन्य इलाकाई पार्टियों का रूख भी नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन के हक में जा सकता है.
अनुमान नंबर 3
अगर 2024 की असेंबली में एक अच्छी खासी तादाद छोटी पार्टियों और आज़ाद उम्मीदवारों की हो जाए तो तीसरा इमकान भी पैदा हो जाता है. इस तरह की सूरतेहाल में सियासी मैनेजमेंट के माहिर लोगों को अपनी महारत का सुबूत पेश करना होगा. नेशनल लेवल पर ऐसा कई बार हो चुका है कि ज्यादा सीट जीतने वाली पार्टी बहूमत से बाहर रहे और कम सीट जीतने वाली पार्टी का लीडर सीएम की कुर्सी पर फायज हो जाए... जम्मू कश्मीर में भी तीन बार ये तजुर्बा हो चुका है. 2002 में पीडीपी - कांग्रेस का इत्तेहाद हुआ .. सबसे ज्यादा 28 सीट जीतने के बावजूद ..एनसी बहूमत से बाहर रही और मुफ्ती सईद और गुलाम नबी आज़ाद तीन तीन साल वजीर आला बने. 2008 में एनसी ने कांग्रेस को साधते हुए पीडीपी और बीजेपी को इक्तेदार से दूर रखा. तीसरी बार 2014 में पीडीपी फिर फायदे में रही. बीजेपी के साथ मिलकर पीडीपी ने हुकूमत बनाई. इन तीनों मवाके की खास बात ये थी तीनों गठबंधन हुकूमत में जम्मू रीजन के नतीजे निर्णायक साबित हुए. क्या 2024 में भी ऐसा होगा. इसके लिए 8 अक्तूबर का इंतेजार करें...