ग़ुलाम नबी आज़ाद ने क्यों नहीं अपनाया सोनिया गांधी का अहम प्रस्ताव, जानें असल वजह

Written By Tahir Kamran Last Updated: Aug 20, 2022, 04:55 PM IST

नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर काग्रेंस कमेटी में बड़ा बदलाव करते हुए कई नई चेहरों को जगह दी. कुछ अनुभवी नेताओं को साथ लाने की कोशिश की गई. इसी कड़ी में पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद को केंद्र शासित प्रदेश में पार्टी की प्रचार समिति का प्रमुख नियुक्त किया. वहीं गुलाम नबी आजाद के ही करीबी वकार रसूल को जम्मू-कश्मीर कांग्रेस का नया प्रमुख बनाया गया. गुलाम नबी आजाद को तो प्रचार समिति का अध्यक्ष बना दिया, लेकिन चंद घंटों के बाद आजाद ने सोनिया के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. आखिर ऐसा क्या हुआ कि गुलाम नबी आजाद को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. समाचार एजेंसी पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से बताया कि नियुक्तियों को सार्वजनिक किए जाने के कुछ घंटे बाद आज़ाद ने सोनिया गांधी के प्रस्ताव को स्वीकार करने से इनकार कर दिया.

ये है इस्तीफा की असल वजह

गुलाम नबी आजाद ने सोनिया को प्रस्ताव को क्यों ठुकाराया, इसका उन्होंने नहीं बताया, लेकिन जब बाद में बात ने तूल पकड़ी तो आजाद की तरफ से कहा गया कि स्वास्थ्य कारणों के चलते इस्तीफा दिया है. लेकिन असल में अंदर की कहानी कुछ और ही है. जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के करीबी सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस पार्टी ने जिस प्रचार कमेटी का गठन किया है, उसमें जमीनी नेताओं को छोड़ दिया गया है. जब जमीनी नेताओं को छोड़ दिया गया तो गुलाम नबी आजाद पार्टी इस फैसले से खुश नहीं थे. इसलिए उन्होंने नाम का ऐलान किए जाने के बाद चंद घंटों बाद ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया.

आने वाले दिनों में बुलंद हो सकते हैं बगवात के सुर

अब अगर ये बात सही है कि गुलाब नबी आजाद ने अपनी पार्टी से नाराज होकर इस्तीफा दिया है तो मतलब साफ है कि अंदरखाने सब ठीक नहीं है. वेसे पार्टी से लंबे समय से कुछ मुद्दों को लेकर पार्टी से मतभेद चल रहे हैं. अब अगर जम्मू कश्मीर प्रदेश कमेटी में भी असंतोष को पात को बात मान लिया जाए तो आने वाले दिनों में पार्टी के अंदर बगावत के नए सुर बुलंद हो सकते हैं.

गौरतलब है कि गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के ‘जी 23’ समूह के प्रमुख सदस्य हैं. यह समूह पार्टी नेतृत्व का आलोचक रहा है और एक संगठनात्मक बदलाव की मांग करते आया है. आजाद को राज्यसभा से सेवानिवृत्त होने के बाद दोबारा उच्च सदन में नहीं भेजा गया था.