जम्मू-कश्मीर: श्रीनगर की डल झील और इसपर तैरते शिकारा और हाउस बोट दुनिया भर में मशहूर हैं। यहां छु्ट्टियां बिताना बहुत से सैलानियों का सपना होता है। लेकिन जैसे ही आप गहमागहमी से दूर अंदरूनी इलाके में दाखिल होते हैं तो झील की ख़स्ता हालत आपके सामने होती है। पानी में उगने वाली अंधाधुंध जंगली घास, निर्माण स्थलों से आने वाली गाद और यहां गिरने वाला करोड़ों लीटर सीवेज़ का पानी इस खूबसूरत झील का दम घोट रहे हैं।
श्रीनगर की मशहूर डल झील सिर्फ इस शहर ही नहीं, बल्कि पूरी कश्मीर घाटी की पहचान है। इस ख़ूबसूरत झील को देखने के लिए, हर साल हजारों की तादाद में टूरिस्ट इसकी तरफ खिंचे चले आते हैं। लेकिन इसमें बढ़ने वाली जंगली घास, सीवेज का पानी और गाद, झील को दूषित कर रहा है।
डल झील को कचरे और खरपतवार से बचाने के लिए सरकार नए कदम उठा रही है। हाल ही में, इसके लिए क्लीन एफेंटेक इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड (CEF) ग्रुप और नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (NAFED) ने एक समझौता किया। जिसके तहत झील से निकाले गए, हजारों टन कचरे को प्रोसेस कर इस्तेमाल करने के लायक ऑर्गेनिक खाद में तब्दील किया जाएगा। वेस्ट यानि कचरे की प्रोसेसिंग के लिए एक वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट तैयार किया जा रहा है। अधिकारियों ने बताया कि, ये प्लांट इस साल के अगस्त महीने में बनकर तैयार हो जाएगा। और अपना काम शुरू कर देगा।
नाजुक है झील की हालत
अधिकारियों का कहना है कि, साल 2017 के आंकड़ों की माने तो डल झील में हर दिन, श्रीनगर शहर का 4.4 करोड़ लीटर सीवेज का पानी छोड़ा गया। इसके अलावा, उस वक़्त श्रीनगर में कुल 900 रजिस्टर्ड हाउस बोट थीं और उनके जरिए, हर दिन लगभग 10 लाख लीटर सीवेज का पानी झील में डाला गया। और डल झील में रहने वाले बाशिंदों ने लगभग 50 लाख लीटर पानी झील में छोड़ा। अधिकारियों ने बताया कि, मौजूदा वक़्त में झील में कम से कम 15 नालों के जरिए सीवेज का पानी छोड़ा जाता है।
कश्मीर यूनिवर्सिटी की एक ने साल 2016 में डल झील के पानी को लेकर एक रिसर्च की। जिसमें उन्होंने पाया की झील में सिर्फ 20% पानी साफ है, जबकि झील का 32% पानी हद से ज़्यादा दूषित यानि पॉल्यूटिड है। इसपर अधिकारियों का कहना है कि सरकार और प्रशासन इसके लिए हर मुमकिन कदम उठा रहे हैं। इसके लिए, झील में गिरने वाले गंदे पानी को ट्रीट करने के लिए वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट भी लगाया गया है।
कैसे काम करेगी ये साझेदारी ?
सीईफ ग्रुप (CEF) के फाउंडर और सीईओ (CEO) मनिंदर सिंह नैय्यर बताते हैं कि, बीते कुछ सालों में जम्मू-कश्मीर लेक कंजरवेशन एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी (LCMA) द्वारा इकट्ठा किए गए डेटा की मानें तो डल झील से सालाना 70,000 टन कचरा निकलता है। और मौजूदा वक़्त में इतने ज़्यादा कचरे की प्रोसेसिंग करना बेहद ज़रूरी हो गया है। इसके लिए सीईफ ने एक वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट तैयार करने की जिम्मेदारी ली है।
मनिंदर सिंह बताते हैं कि, "अगस्त 2023 से डल झील से हजारों टन कचरा निकालकर, लगभग 24,000 टन जैविक खाद में तब्दील करेंगे।" इस प्रोजेक्ट का मकसद न केवल पर्यावरण को बचाना है, बल्कि प्लांट से तैयार की जाने वाली जैविक खाद के जरिए, यहां के किसानों केमिकल फर्टिलाईजर्स के स्थान पर जैविक खाद मुहैया कराकर उनकी मदद करना भी है। मनींदर सिंह का कहना है कि, मौजूदा वक़्त में यहां के किसान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से खाद खरीदते हैं, जिसकी लागत भी ज़्यादा होती है।
हालाँकि, वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट तैयार होने के बाद, जम्मू-कश्मीर में किसान को सस्ती कीमतों पर जैविक खाद मिल सकेगी। प्लांट में डल झील से निकाले गए खरपतवार और लिली सहित हर तरह के ऑर्गेनिक वेस्ट को प्रोसेस करने की क्षमता है। यही बेहतरीन क्षमता न केवल कचरे को अच्छे ढंग से मैनेज करती है, बल्कि डल की ख़ूबसूरती को भी बढ़ाती है।
वहीं NAFED के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर, कमलेंद्र श्रीवास्तव बताते हैं कि सरकार क्लाईमेट चेंज के लक्ष्यों को प्राप्त करने और देश भर में ग्रीन डेवलपमेंट को बढ़ावा देने के लिए हर मुमकिन कदम उठा रही है। उन्हें उम्मीद है कि डल झील के लिए तैयार किया जा रहा वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट देश के दूसरे राज्यों के लिए, ऐसा कदम उठाने और वेस्ट मैनेजमेंट के लिए टिकाऊ योजना वाले एक मॉडल के रूप में काम करेगा।
इस ख़ास कोशिश के जरिए, क्लीन एफेंटेक इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड और NAFED ने पर्यावरण के लिए हमारी जिम्मेदारी का एक बेहतरीन नमूना कायम किया है। और सबको दिखाया कि कैसे कचरे को एक कीमती संसाधन में तब्दील किया जा सकता है। जिससे पॉल्यूशन की मार झेल रही डल झील का आने वाला कल सुधर सकेगा।