Jammu and Kashmir: जैसे ही चिलाईकलां के दिन ख़त्म होते हैं, कश्मीर में बर्फबारी कम होने लगती है. इसके पीछे की वजह है अल नीनो इफेक्ट - जो, समुद्र की सतह का गर्म होना, या मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान औसत से अधिक होना.
दरअसल, GDC कुलगाम में पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. गौहर हामिद ने कश्मीर में हो रहे जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर चर्चा की. वहीं, केसर टीवी से बात करते हुए डॉ गौहर ने कहा कि कश्मीर में बर्फबारी न होने की वजहों में से एक ग्लोबल वार्मिंग भी हो सकती है.
उन्होंने आगे बताया कि सर्दियों के दौरान इलाके में बर्फबारी की न होने से सूखा पड़ सकता है, जिससे कृषि और बागवानी जैसे क्षेत्र प्रभावित होंगे.
वहीं, GDC कुलगाम में Zoology के सहायक प्रोफेसर डॉ. ऐजाज ने कहा कि शायद पश्चिमी विक्षोभ के कमजोर पड़ जाने की वजह से बर्फबारी की कमी देखी गई है, क्योंकि इस बार का पश्चिमी विक्षोभ मजबूत नहीं था.
इसके अलावा, डॉ. ऐजाज इस बात पर भी जोर देते हैं कि चिलाईकलां के दिनों में बर्फ न पड़ने से पानी की कमी हो सकती है, जिससे जैव विविधता पर बुरा असर पड़ेगा.
इसके साथ ही, डॉ. गौहर ने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर ध्यान देने और कम करने के लिए सामूहिक वैश्विक प्रयास का आग्रह करते हुए कहा, "यह सिर्फ कश्मीर के लिए चिंता का विषय नहीं है; यह एक वैश्विक मुद्दा है."