New Delhi: इन दिनों सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 370 पर सुनवाई जारी है. इस दौरान जम्मू-कश्मीर को स्टेट का दर्जा देने और विधानसभा चुनाव पर सुप्रीम कोर्ट के सावालों के सरकार ने जवाब दिए हैं. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सवाल किया कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव कब होगें, जिसका जवाब देते हुए सरकार ने कहा कि कश्मीर में अब किसी भी वक्त चुनाव हो सकते हैं. लेकिन इसका निर्णय निर्वाचन आयोग और राज्य चुनाव इकाई के हाथों में है. इसके साथ ही केंद्र ने बताया कि कश्मीर में मतदाता सूची को लगातार अपडेट किया जा रहा है. जिसे पूरा होने में लगभग एक महीने का वक्त लगेगा.
इसके साथ ही सरकार ने कश्मीर को पूर्ण राज्य बनाने पर कहा कि कश्मीर को पूर्ण राज्य बनाने में अभी कुछ और वक्त लगेगा. वहीं केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया कि वे जम्मू-कश्मीर में चुनाव को लेकर तैयार हैं.
ऐसे होगा चुनाव
चुनाव को लेकर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा कि कश्मीर में होने वाले चुनाव तीन स्तरों पर आयोजित किए जाऐंगे- पहला पंचायती, दूसरा में नगर निकाय और फिर तीसरा विधानसभा चुनाव होगें. इसके साथ ही तुषार मेहता ने बताया कि UT लद्दाख में लद्दाख पर्वतीय विकास परिषद, लेह के चुनाव पूर्ण हो चुके हैं. वहीं अगले महीने कारगिल में चुनाव होंगे.
केंद्र की क्या है दलील
सुप्रीम कोर्ट में जारी सुनवाई के दौरान केंद्र ने अपनी बात रखते हुए कहा कि कश्मीर में साल 2018 की तुलना में इस साल यानि 2023 में आतंकवादी घटनाओं में लगभग 45.2% की गिरावट आई है. वहीं घुसपैठ की कोशिशों में 90% तक कमी आई है. इसके साथ ही घाटी में पत्थरबाज़ी जैसे अव्यवस्था वाले मामलों में भी 97% तक की कमी आई है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि घाटी में जान गंवाने वाले सैनिकों की तादाद में भी लगभग 65% तक की गिरावट आई है. उन्होंने बताया कि साल 2018 में पत्थरबाजी के 1,767 मामले दर्ज हुए थे, जोकि साल 2023 में घटकर शून्य पर पहुंच गए हैं.
आर्टिकल 370 को निरस्त करने के खिलाफ याचिका दायर करने वाले पक्ष की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दलील दी कि, 'सरकार ने 5,000 लोगों को नजरबंद किया है, धारा 144 लागू की गई थी। इंटरनेट बंद था और लोग अस्पतालों में भी नहीं जा सकते थे... लोकतंत्र का मजाक नहीं बनाना चाहिए और बंद के बारे में बात न करें.'