कश्मीर का एक ऐसा गांव जहां का हर बाशिन्दा है म्यूजिक का शौकिन, बजाता है कोई न कोई इंस्ट्रूमेंट

Written By Rishikesh Pathak Last Updated: May 05, 2023, 02:01 PM IST

बारामुला : कश्मीर की वादियों में केवल खुबसुरती ही नहीं टैलेन्ट का भी भरमार है। आज हम आपको बारामूला जिले के बतसुम रफियाबाद गांव लेकर चलेंगे जहां म्यूजिक को लेकर वहां के हर बाशिन्दे में एक अलग दिवानगी है। यहां का हर बाशिन्दा म्यूजिक का कोई न कोई इन्सट्रूमेन्ट जरूर बजाता है। पढ़िए हमारी इस खास रिपोर्ट में।


 
आज हम आपको एक अलग ही दुनिया में ले जायेंगे । इस दुनिया को म्यूजिक की दुनिया कहते है। तस्वीर में अलग अलग म्यूजिक इस्ट्रूमेन्ट बजाते ये लोग एक ही जगह से ताल्लुक़ रखते है। इस गांव से हम आपको रूबरू करवाते है, नाम है बतसुमा रफियाबाद जो कि बारामूला जिले में बसा हुआ है। इस गांव की सबसे बड़ी खासियत है कि यहां का हर बाशिन्दा म्यूजिक में जरूर दिलचस्पी रखता है या तो वो सिंगिंग अच्छी करता है या फिर म्यूजिक के किसी न किसी इस्ट्रूमेन्ट पर अपने हाथों की जादूगरी जरूर दिखाता है। कश्मीर के पारंपरिक लोकगीतों को गाना और उस पर इंस्ट्रमेन्ट बजाते हुये लोग आपको हर दूसरे घर में मिल जायेंगे। इस गांव की लगभग 80 फीसदी आबादी म्यूजिक में अपना करियर बना रही है। इसलिए कश्मीर के लोग इस गांव को म्यूजिक विलेज के नाम से भी जानते है। टैलेन्ट से भरपुर इस गांव के लोगों को बस एक चीज की दरकार है कि उनके इस हूनर को पहचान मिले और इसे केन्द्र सरकार जरूर तवज्जों दे, ताकि कश्मीर का ये हूनर दुनिया में अपना एक अलग नाम बना सके। कोई सांरगी बजाने में तो कोई रबाब बजाने में , तो कोई हारमुनियम और डप्पली बजाने की कला में बिल्कुल उस्ताद है। 

 

इस गांव के मकामी बाशिन्दे और मशहुर गायक मंजूर अहमद शाह का कहना है कि उन्होंने बचपन से म्यूजिक पर काम किया है और म्यूजिक का इल्म यहां के हर बाशिन्दे को है बतसुम गांव से बहुत से गायक और इन्सट्रूमेन्ट बजाने वाले निकले है । लेकिन सरकार की ओर से जो सम्मान हमें मिलना चाहिए था वो आज भी अधूरा है। हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को वो विरासत में देकर जाने की कोशिश कर रहे है जो हमें मिला म्यूजिक, फोक म्यूजिक हमारा कल्चर है और हम उस म्यूजिक को जिन्दा रखने के लिए हमेशा से प्रयास कर रहे है। 


 
 
म्यूजिक को लेकर जो छोटी छोटी बारीकियां होती है, उसकी ट्रेनिंग इस गांव के बच्चों को अपने बुजुर्गों के माध्यम से शुरूआत में ही मिल जाती है लेकिन म्यूजिक में प्रोफेसनल होने के बावजूद जब उन्हें कोई काम नहीं मिलता तो वो निराश हो जाते है गांव के स्थानीय गायक का मानना है कि पांरपरिक गीत कश्मीर की पहचान है और सरकार को इस ओर ध्यान भी देना चाहिए।


 
 
बतसुम गांव के लोगों का मानना है कि म्यूजिक किसी को भी सिखाया नहीं जा सकता है। इसे सीखने के लिए इबादत करनी पड़ती है और जब आप म्यूजिक के सुरों से अपने मन को जोड़ लेते हो तो आप सीखते चले जाते हो गांव का हर बाशिन्दा अपने आप ही म्यूजिक की ओर खींचा चला जाता है।  इसके पीछे बहुत बड़ा कारण वो खुदा की नेमत को मानते है। एक बुजुर्ग बताते है कि जब हमारे घरों में बच्चे अपने पिता को या उनके दादा को फोक म्यूजिक गाते बजाते देखते है तो खुद ब खुद इस ओर अपना ध्यान लगाकर सीखते चले जाते है। बतसुम गांव ने इतने टैलेन्टड गायक और इन्सुट्रमेन्ट बजाने वाले दिये है, लेकिन सरकार की ओर से कभी कोई मदद नहीं मिली है । जिसके कारण उन्हें वो सम्मान नहीं मिल पाया जिस के वो हकदार है । 
 
 
 
बारामुला जिले के बतसुम गांव का हर बाशिन्दा म्यूजिक के किसी न किसी आयाम में उस्ताद है लेकिन यहां के मकामी बाशिन्दों का मानना है कि गांव में टैलेन्ट की कमी नहीं है लेकिन किसी भी सरकार ने उनके इस टैलेन्ट को लेकर कोई रूचि नहीं दिखाई है। कलाकार सम्मान का भुखा होता है। लिहाजा यहां के लोगों की अपील है कि सरकार उनके इस गांव के टैलेन्ट की ओर ध्यान दे ताकि कश्मीर का हूनर पुरी दुनिया तक पहुंच सके ।