जम्मू और कश्मीर:- हाल ही में, जम्मू-कश्मीर के फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने गायब हो रहे जानवरों की एक लिस्ट तैयार की है। महकमा-ए-जंगलात ने कुछ जंगली जानवरों को विलुप्त प्राय किस्मों में शामिल किया है। जिनकी तादाद में लगातार कमी आ रही है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई, उनका सिकुड़ते जाना, इंसानों की बढ़ती आबादी और ग़ैर-क़ानूनी शिकार की वजह से आज इन जानवरों का वजूद ख़तरे में है।
इन जानवरों पर मंडरा रहा है ख़तरा
फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट ऑफ जम्मू-कश्मीर ने वजूद के ख़तरे वाले इन जानवरों के लिए एक मैग्ज़ीन जारी की है। इस मैग्ज़ीन के हिसाब से हांगुल, कश्मीरी कस्तूरी हिरण, चिरू, तिब्बती मृग, हिमालयन सेरो, कश्मीरी मारखोर, स्नो लेपर्ड, हिमालयन ब्राउन बेयर और हिमालयन आईबेक्स का वजूद ख़तरे में है। आईये इन जानवरों के मौजूदा हालात के बारे में जानते हैं।
हांगुल :-
जम्मू-कश्मीर का स्टेट एनिमल हांगुल, यहां की शान है। ये ज़्यादातर जम्मू-कश्मीर में ही पाए जाते हैं। इन्हें डाचीगाम नेशनल पार्क, आरू, त्र राल, वांगाथ-नारांग, और ओवेरा में देखा जा सकता है। बदक़िसमती से, अब कश्मीरी हांगुल की तादाद लगातार कम होती जा रही है। जिसकी वजह से इन्हें ग़ायब होने की कगार वाली क़िस्म / विलुप्त प्राय श्रेणी में रखा गया है। देश में कश्मीरी हांगुल की तादाद अब घटकर 300 से भी कम रह गई है।
कश्मीरी कस्तूरी हिरण:-
जम्मू-कश्मीर के कश्मीर, चिनाब वेली और पीर पंजाल इलाक़े में पाए जाने वाले कस्तूरी हिरण की तादाद ग़ैर-क़ानूनी शिकार की वजह से लगातार कम हो रही है। अपने रंग रूप के कारण, दूसरे कस्तूरी हिरण से अलग दिखने वाला इस हिरण के आकर्षण से लोग बच नहीं पाते। इनमें नर कस्तूरी हिरण अपनी गंध के लिए, ख़ासा मशहूर हैं। और यही कारण है कि शिकारी इनका शिकार करते हैं। शिकार की वजह उनके गंध पैदा करने वाले ग्लैंड्स हैं। जिनका इस्तेमाल इत्र और पारंपरिक दवा बनाने के लिए किया जाता है। मार्केट में इन सेंट ग्लैंड्स की क़ीमत सोने से भी ज़्यादा बताई जाती है।
तिब्बती हिरण या चिरू:-
जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, ये हिरण की वो क़िस्म है जो तिब्बती पठार पर पाई जाती है। पठार की ऊंचाई समुद्र तल से 3,600 से 5,500 मीटर ऊपर हैं। आमतौर पर इतनी ऊंचाई पर, oxygen का दबाव समुद्र तल के मुकाबले बहुत कम होता है। चिरू भी इतनी ऊंचाई पर कम oxygen के साथ ज़िंदा रहने के लिए ढल चुके हैं। लेकिन बढ़ते शिकार और चरागाहों की कमी से इनकी तादाद में कमी आई है।
हिमालयन सेरो:-
हिमालयन सीरो भी बकरी की एक रेयर क़़िस्म है। इसे IUCN (International Union for Conservation of Nature) की ख़त्म या ग़ायब हो चुके जानवरों की क़िस्म में शामिल किया है। हांलाकि 2020 में हिमाचल प्रदेश की स्पीति वैली में एक सीरो को देखा गया था। इनकी ख़त्म होती तादाद को देखते हुए सरकार ने इन्हें क्राइसिस (Crisis) के क़रीब वाले जानवरों की लिस्ट में रखा है।
कश्मीरी मारखोर:-
मारखोर दुनिया भर में पाए जाने वाले जंगली बकरों की सबसे बड़ी और ख़ास नस्ल है। जो भारत के अलावा पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्कमेंनिस्तान में भी पाए जाते हैं। जम्मू-कश्मीर में इस जानवर को काजीनाग नेशनल पार्क, लच्छी पोरा, हीरपोरा जैसे इलाक़ों में देखा जा सकता है। मौजूदा आंकड़ों के हिसाब से, देश में इस वक़्त केवल 300 से 400 मारखोर बचे हैं।
स्नो लेपर्ड (हिम तेंदुआ) :-
कश्मीर में स्नो लेपर्ड को पहाड़ों का भूत के नाम से भी जाना जाता है। अपने ख़ूबसूरत फ़र और रहस्यमयी होने के लिए दुनिया भर में मशहूर स्नो लेपर्ड मध्य एशिया के बीहड़ पहाड़ों में पाये जाते हैं। साल 1985 से इसे जंगली जानवरों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर कन्वेंशन की लिस्ट I में ग़ायब या ख़त्म होने के ख़तरे वाले जानवरों की लिस्ट में रखा गया है। मौजूदा वक़्त में इनकी तादाद लगभग 500 रह गई है।
किश्तवाड़ में देखा गया था स्नो लेपर्ड:-
आमतौर पर स्नो लेपर्ड जम्मू-कश्मीर, लद्दाख़, उतराखंड और हिमाचल की बर्फ़ीली पहाड़ियों पर देखे जाते हैं। जम्मू-कश्मीर में आख़िरी बार किश्तवाड़ इलाक़े की पहाड़ियों पर दिखाई दिया था।
हिमालयन ब्राउन बेयर :-
हाल ही में ज़ूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने पश्चिमी हिमालय में एक स्टडी की, जिसके हिसाब से साल 2050 तक हिमालयन ब्राउन बेयर के रिहायशी इलाके में लगभग 73% की भारी कमी आएगी। भारत में ब्राउन बेयर को भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की लिस्ट 1 तथा आई.यू.सी.एन. की रेड लिस्ट में लीस्ट कंसंर्न्ड (Least Concern) श्रेणी में शामिल किया गया है।
हिमालयन आईबेक्स:-
जम्मू-कश्मीर के लोग हिमालयन आईबेक्स को जंगली बकरे के नाम से भी जानते हैं। लंबे-लंबे और मुड़े हुए सींग वाले हिमालयन आईबेक्स को साइबेरियन आईबेक्स की उपप्रजाति भी कहा जाता है । भारत में ये जम्मू-कश्मीर के कांजी सेंचुरी और हिमाचल प्रदेश की पिन वैली में देखे जा सकते हैं। हिमालयन आईबेक्स को IUCN (International Union for Conservation of Nature) की लीस्ट कंसर्ड (Least Concerned) श्रेणी / क़िस्म में रखा गया है। फ़िलहाल दुनिया भर में इनकी कुल संख्या 6000 है। सरकार इन्हे बचाने के लिए पुरज़ोर कोशिश में लगी हुई है।
क्या कहते हैं पर्यावरणविद ?
पर्यावरणविद एवं वन्यजीवों के जानकार सीएम शर्मा ने कहा कि सरकार इन विलुप्त प्राय श्रेणी के वन्यजीवों के संरक्षण में काम कर रही है और हमें उम्मीद है कि आने वाले समय में अच्छे रिज़ल्ट आएंगे।