जम्मू और कश्मीर : किसी भी राज्य के लिए सबसे बड़े गर्व और शान की बात तब होती है जब वहां का कोई बाशिन्दा वो मकाम पा लेता है जो की सबसे ऊपर हो, ऐसा ही मकाम हासिल किया है। जम्मू कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, सोवरा की एक स्टाफ नर्स फिरदौसा जान ने इन्हें राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह के दौरान भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार -2023 से सम्मानित किया है। ये वो मकाम है जो सबसे ऊपर है इस पुरस्कार को चुनिन्दा लोगों को ही दिया जाता है। इसके सिलेक्शन के लिए देश के लगभग हर हिस्से से कई नाम आते है जिनमें से कुछ ही लोगों को हेल्थ सेक्टर में उनके द्वारा किए गए श्रेष्ठ सेवा भाव के लिए दिया जाता है।
फिरदौसा जान मूल रूप से जिला बडगाम के चरारे शरीफ क्षेत्र की रहने वाली हैं। वर्तमान में वह श्रीनगर के बागे महताब क्षेत्र में रह रही हैं और पिछले करीब दो दशक से एक नर्स के रूप में अपनी सेवाएं दे रही हैं। समय के साथ उन्होंने अपने अथक प्रयासों से मरीजों की देखभाल में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है, खासकर कोविड-19 महामारी के दौरान उन्होंने अपने जिन्दगी की परवाह किए बगैर मानव सेवा की श्रेष्ठ भावना का प्रदर्शन करते हुए लोगों की सेवा की इसके लिए भारत की राष्ट्रपति ने उन्हें सम्मानित किया है।
एक इंटरव्यूह बात करते हुए फिरदौसा जान ने बताया कि, “वो एक सरकारी स्कूल से पढ़ी हैं और मिडिल क्लास परिवार से संबंध रखती हैं। उन्होंने संघर्ष को बड़े ही नजदीक से देखा है, जब वो तीन महीने की थी तो उनके पिता का देहांत हो गया था। वो बताती है कि उन्होंने अपने पिता को नहीं देखा और उनकी मां ने ही उनकी परवरिश की है। अकेली औरत के लिए समाज में बच्चे को पालना बहुत कठिन होता है लेकिन उनकी मां ने कभी भी उन्हें किसी भी चीज की कमी नहीं होने दी, लेकिन बाद में उनकी मां का भी देहांत हो गया। सरकारी स्कूल में पढाई के बाद उन्होंने अपनी मां का सपना पूरा किया और इस प्रोफेशन को अपनाते हुए सेवा शुरू कर दी। फिरदौसा की मां टीचिंग प्रोफेशन में थी और वो हमेशा बोलती थी यह पेशा एक ऐसा पेशा है जहां आप अपनी सेवाओं से लोगों की दुआएं और और स्वयं संतुष्टि पाओगे।'
उन्होंने बताया कि, " बतौर एक स्टाफ नर्स साल 2000 में उन्होंने अपनी सर्विस देना शुरू कर दिया था। और अब यह पुरस्कार मुझे मरीजों की भलाई के लिए और अधिक काम करने के लिए और भी ज्यादा प्रेरित करेगा।'' आगे वो बताती है कि उन्होंने सेवा में रहते हुए एमएससी नर्सिंग की है और वर्तमान में पीएचडी कर रही हैं। फिरदौसा जान ने कहा, "स्किम्स में अपनी पूरी सर्विस के दौरान, उन्होंने सर्जिकल आईसीयू, कैजुअल्टी के साथ-साथ ऑपरेटिंग रूम में भी काम किया है और अस्पताल में प्रभावी रोगी देखभाल के लिए अपना योगदान देने की कोशिश की है।"
उनको वर्तमान में स्किम्स में एक वर्ष के लिए ट्यूटर के रूप में नियुक्त किया गया है। नर्सिंग कॉलेज जहां वह युवा नर्सों को न केवल उनके कौशल पर बल्कि फील्ड वर्क में उनके सामने आने वाली चुनौतियों पर भी ट्रेनिंग देकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रही हैं।
उन्होंने बताया कि, “इसके अलावा, उन्होंने नर्सिग सर्विस पर एक किताब भी लिखी है और इसका मकसद स्टूडेन्टस को लाभ पहुंचाना और उन्हें विशेषज्ञता की विशिष्टताओं को समझाना है। उन्होंने ये सब कहीं से किसी वित्तीय मदद के बिना, अपने दम पर किया। इसके अलावा, उनके नाम पर कई प्रकाशन हैं जो समय के साथ अलग अलग सबजेक्ट पर लिखे गए हैं।'इसके अलावा, उन्होंने कमजोर आयु वर्ग पर विशेष ध्यान देने के साथ कई स्कूलों में नशीली दवाओं की लत पर जागरूकता प्रोग्राम के रूप में अपने काम का भी उल्लेख किया है। जब कोविड-19 टीकाकरण शुरू किया गया था, तो एक सहयोगात्मक कार्य के रूप में, मैंने टीके के प्रति झिझक के मुद्दे पर भी बड़े पैमाने पर काम किया है।"
गौरतलब है कि इस पुरस्कार पर - नर्सों और नर्सिंग प्रोफेशनल द्वारा समाज के लिए प्रदान की गई बेस्ट सर्विस के लिए मान्यता के प्रतीक के रूप में वर्ष 1973 में भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा स्थापित किया गया था। उन्होंने कहा कि वह यह कहते हुए उत्साहित महसूस करती हैं इसने लोगों की अपेक्षाओं को बढ़ाने के अलावा, उनके कंधों पर और अधिक जिम्मेदारियां डाल दी हैं।
फिरदौसा जान ने कहा, “मैं उत्साहित महसूस कर रही हूं क्योंकि ये पुरस्कार हेल्थ प्रोफेशनल की सर्विस को मान्यता देता है। हेल्थ सर्विस देने वालो ने कश्मीर में कई चुनौतियां देखी हैं, लेकिन इसके बावजूद, उन्होंने प्रभावी ढंग से काम किया है। इस तरह के पुरस्कार ऐसे प्रयासों की मान्यता हैं।” उन्होंने कहा कि वह जम्मू-कश्मीर, विशेष रूप से कश्मीर में रोगी देखभाल और टोटल हेल्थ देखभाल मैनेजमेन्ट में योगदान करने में बहुत खुश होंगी।