जम्मू कश्मीर की सियासत में उमर अब्दुला ने अपनी राजनीतिक विरासत को कायम रखा है

Written By Rishikesh Pathak Last Updated: May 11, 2023, 03:11 PM IST

कश्मीर की सियासत में शेख अब्दुला की लोकप्रियता और उनके योगदान के कारण इसका सीधे तौर पर लाभ उनके परिवार को मिला है।  यही कारण है कि पहले शेख अब्दुला फिर उनके बेटे फारूख अब्दुला और फिर उनके बेटे उमर अब्दुला प्रदेश के मुख्यमंत्री बने । आईये जानते है कि कश्मीर की राजनीति में उमर अब्दुला के योगदान को । पढ़िए हमारी इस खास रिपोर्ट में

शेख अब्दूला के पौत्र और फारूख अब्दुला के बेटे उमर अब्दूला का जन्म 10 मार्च 1970 को ब्रिटेन में हुआ था । उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा श्रीनगर के बर्न हॉल स्कूल और फिर हिमाचल प्रदेश के सनावर के लारेंस स्कूल से की । उसके बाद में वो हाई एजुकेशन के लिए स्कॉटलैंड चले गए । उन्होंने स्ट्रेथक्लाइड यूनिवर्सिटी से कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया।  इसके बाद उसी यूनिवर्सिटी  से उन्होंने एमबीए की पढ़ाई भी पूरी की। 

राजनीतिक की शुरूआत


एक कुशल वक्ता और भारतीय नेता के रूप में इनके नाम जम्मू- कश्मीर के अब तक के सबसे युवा मुख्यमंत्री बनने का रिकोर्ड दर्ज है। उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर 5 जनवरी 2009 को गठबंधन में सरकार बनाई और वे गठबंधन से पहली बार कश्मीर के मुख्यमंत्री बने। पहली ही बार में मुख्यमंत्री बनकर कार्यकाल पूरा करने का रिकॉर्ड भी उमर अब्दुला के नाम दर्ज है।  इससे पहले यह उपलब्धि किसी भी अन्य मुख्यमंत्री के पास नहीं थी। उमर के दादा शेख मुहम्मद अब्दुल्ला और पिता डॉ. फारूक अब्दुल्ला भी बतौर मुख्यमंत्री अपना पहला कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे। इसके अलावा उमर अब्दुला लगातार तीन बार लोकसभा का चुनाव जीतने का रिकॉर्ड भी बना चुके हैं।

कश्मीर के युवाओं की पहली पसन्द 

आवाम के बीच इनकी लोकप्रियता और कश्मीर के युवाओं की पहली पंसद के रूप में उमर अब्दुला ने हमेशा अपनी जगह बनाई है। 1999 में महज 29 साल की उम्र में उमर अब्दुला केन्द्र में वाणिज्य और उद्योग राज्यमंत्री बने। तो वहीं 2001 में विदेश राज्यमंत्री भी बनें। उमर अब्दुला ने केंद्र में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत काफी सफलतापूर्वक की । लेकिन राज्य स्तर पर उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत खराब रही। उमर ने जम्मू और कश्मीर में चुनाव लड़ा और प्रतिद्वंद्वी पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) से अपनी सीट हार गए। चुनाव के दौरान पार्टी ने गठबंधन की सरकार बनाकर राज्य में कांग्रेस और अन्य छोटे दलों के साथ गठबंधन किया था। 
2004 के लोकसभा चुनाव से वापसी
2004 के आम चुनावों में उमर लोकसभा में लौट आए। उमर अब्दुला ने भारत सरकार के द्वारा सेना को दिए विशेषाधिकार कानून अफसपा का हमेशा विरोध किया। सेना की शक्तियों से आवाम को रही परेशानिय़ों को कई बार संसद के पटल पर रखा। कश्मीर के लोगों की आवाज उठाने के कारण लोगों के बीच वो काफी लोकप्रिय हुये। उमर अब्दुला ने अपनी राजनीति का केन्द्र हमेशा कश्मीर के लोगों की भलाई को रखा है ।

पायलनाथ से की शादी


जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और उनकी एक्स वाइफ पायल नाथ 17 साल की शादी निभाने के बाद भले ही एक दूसरे से अलग हो चुके हों लेकिन कभी उनकी भी एक खूबसूरत प्रेम कहानी थी. ये दोनों पहले एक दूसरे के प्रति आकर्षित हुए, फिर प्यार हुआ और फाइनली दोनों ने शादी कर ली थी. उमर और पायल की प्रेम कहानी दिल्ली के ओबेराय होटल से शुरू हुई थी. दरअसल उमर यहां होटल ग्रुप के मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव थे और पायल नाथ भी यहां काम करती थीं. इसी दौरान उमर की उनसे आंखे चार हो गई थी. पायल के पिता मेजर जनरल रामनाथ सेना से रिटायर्ड हैं. वहीं उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के बेटे हैं. मजहब की दीवार पार कर उमर और पायल ने 1994 में शादी कर ली थी. उमर और पायल के दो बेटे हैं जाहिर और जमीर. वहीं 17 साल की शादी के बाद उमर अब्दुल्ला और पायल एक दूसरे से अलग हो गए थे.

विवादित बयानों से गहरा नाता 


उमर अब्दुल्ला ने द्रास में आने से रोके जाने का आरोप लगाते हुए लद्दाख प्रशासन और केंद्र सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि आप चीन को तो रोक नहीं सके, वह यहां आकर बैठ गया, उसे आप भगा नहीं सके, आपने बहादुरी नहीं दिखाई और हमें कहते हैं कि लद्दाख मत आओ, यहां माइक मत लगाएं। पता नहीं, ये लोग हमसे क्यों डरते हैं।
बीजेपी के नुपुर शर्मा और नवीन जिंदल को संस्पेंड करने पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने बीजेपी की इस कार्रवाई पर तंज कसा है और सोशल मीडिया पर बयान दिया कि भाजपा "अचानक जाग'' सी गई है. इसका मुसलमानों की भावनाओं से कोई लेना-देना नहीं है. वह अंतरराष्ट्रीय ऑडियंस को फोकस करते हुए इस तरीके की कार्रवाई कर रही है.

कुलमिलाकर जम्मू कश्मीर की राजनीति में गहरी पकड़ रखने वाले उमर अब्दुला ने अपनी राजनीतिक विरासत को हमेशा कायम रखा है ।