नारी शक्ति का स्वरूप है ये हर कोई जानता है, वो करूणामयी ममतामयी मां का स्वरूप है। तो बहन के रूप में भाई की हमेशा चिंता करने वाली है तो वहीं पत्नी के रूप में नारी, पुरूष का घर बसाने वाली और उसकी अर्धांगिनी है। वो असंभव को भी संभव करने की हिम्मत रखती है। दक्षिण कश्मीर में कनीपोरा कुलगाम की नसीरा अख्तर इसकी जीती जागती मिसाल हैं। पूरी दुनिया के विज्ञानी और पर्यावरणविद जिस प्लास्टिक को हराने के प्रयास में हारते नजर आ रहे थे, नसीरा ने उसी जंग को जीत कर दिखाया है।
तो आईये आज हम आपको बताते है नासिरा अख्तर के बारें में जिसने कभी वक्त और हालत के सामने कभी हार नहीं मानी। यही कारण है कि पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने इन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित भी किया है। इन्होंने समाज सेवा, शिक्षा, विज्ञान, नवाचार समेत अलग अलग कैटगरी में अपने टैलेन्ट को साबित करते हुए पूरे समाज को नई दिशा दिखाई है।
नसीरा का सम्बन्ध साइंस से नहीं है, न उन्होंने साइंस में हाई एजुकेशन ली है। कुलगाम को महिलाओं की साक्षरता के मामले में पिछड़ा जिला माना जाता है। वह इसी जिले के कनीपोरा में रहती है। कई लोग दावा करते हैं कि वह 12वीं पास है, लेकिन खुद उसकी जुबानी वो बताती है कि उन्होंने 10वीं पास की है। इंडिया बुक आफ रिकाड्र्स, अनसंग इनोवेटर्स आफ कश्मीर और कई इंटरनेशनल लेवल के जर्नल में उसकी कहानी पब्लिश हो चुकी हैं।
रिसर्च में लगे 8 साल
दो बेटियों की मां नसीरा पोलूयशन कंट्रोल बोर्ड में कुछ सालों से काम कर रही है, लेकिन उनकी सोच ही का कमाल है कि साइंस के बेकग्राउण्ड से न होते हुए भी वो कई सालों से प्लास्टिक को कैसे खत्म किया जाए इसे लेकर काम कर रही थी। वो अलग अलग हर्ब एंजाइम का इस्तेमाल कर प्लास्टिक को खत्म करने का काम कर रही थी, और ऐसा करते करते आखिर उन्हें एक दिन सफलता मिल ही गई और उन्होंने पाया की प्लास्टिक अब राख बनने लगा है। उनके बनाये हर्ब एन्जाइम से प्लास्टिक खत्म होने लगा उनकी इस इनोवेशन की खब़र पूरे कश्मीर में फैल गई और कश्मीर विश्वविद्यालय ने उन्हें बुलाया कश्मीर यूनिवर्सिटी साइंस इंस्ट्रूमेंशन सेंटर में प्रो गुलाम मोहिउद्दीन बट ने नसीरा के प्रयास की जमकर तारीफ की । उन्हें कलाम वर्ल्ड रिकॉर्ड, एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स द्वारा मान्यता दी जा चुकी है. उन्हें लंदन में वर्ल्ड रिकॉर्ड यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की मानद उपाधि भी मिली है.
प्लास्टिक को कैमिकल से राख बनाया जा सकता है इस बारें में कभी किसी ने भी सोचा नहीं होगा लेकिन नसीरा अख्तर को प्लास्टिक को खत्म करने का जूनून सवार हो गया था वो रात दिन अपना सारा समय फार्मुले को तैयार करने में लगाती थी और एक दिन उनकी मेहनत का फल उन्हें मिल ही गया ।
पति के गुजरने के बाद किया संघर्ष
नसीरा को कामयाबी बड़े मुश्किल हालतों का सामना करने के बाद मिली है। उनके पति की मौत शादी के तीन साल बाद हो गई थी, उनके हिस्से पति की वो दुकान आई जिसे वो चलाते थे। नसीरा बताती है कि उन्हें बहुत से सम्मान मिले हैं, कई किताबों में उनका नाम आया है,लेकिन यह खुदा की देन है। प्लास्टिक का कचरा जब वो अपने आंगन और गांव में देखती थी तो उनका दिल बहुत दुखी होता था। उनका मानना है कि राष्ट्रपति से मिलने वाला सम्मान पुरस्कार उनका नहीं है, उन सभी महिलाओं का है,जो मुश्किल हालात में रहते हुए कुछ नया करना चाहती हैं। नसीरा अख्तर अपनी कामयाबी के लिए खुदा का शुक्र गुजार करती है।