लंदन में डॉक्टरी की प्रैक्टिस करते थे फारूक अब्दुल्ला, इस घटना ने बना दिया पॉलिटिशियन

Written By Rishikesh Pathak Last Updated: May 11, 2023, 12:57 PM IST

Farooq Abudllah: ज़मीन की जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके फारूक अब्दुल्ला अक्सर अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहते हैं. साथ ही केंद्र की भाजपा सरकार को भी घेरते हैं. आज हम आपको फारूक अब्दुल्लाह की निजी जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातें बताने जा रहे हैं. फारूक अब्दुल्लाह का जन्म एक इस्लामिक परिवार में 21 अक्टूबर 1937 को कश्मीर के सौरा में हुआ था. उनके पिता का नाम शेख अब्दुल्ला और मां का नाम बैग़म अकबर जहां अब्दुल्ला है.

फारूक अब्दुल्लाह का परिवार
फारूक अब्दुल्लाह के पिता जम्मू-कश्मीर के एक जाने-माने पॉलिटिशियन थे. इसके अलावा उनकी मां भी लोकसभा मेंबर रह चुकी हैं. वहीं फारूक अब्दुल्लाह के दादा शेख मोहम्मद का भी कश्मीर की सियासत पर खूब दबदबा था. इनके एक भाई भी है, जिनका नाम शेख मुस्तफा कमल है और वह भी एक पॉलिटिशियन हैं. उनकी बहन का नाम सुरैया अब्दुल्ला है, वो भी कश्मीर का एक जाना पहचाना चेहरा हैं।


ब्रिटेन में की डॉक्टरी की पढ़ाई
फारूक अब्दुल्लाह ने अपनी शुरुआती पढ़ाई श्रीनगर के मशहूर Tyndale Biscoe School से की थी. वह डॉक्टर बनना चाहते थे इसलिए स्कूलिंग के बाद वह एमबीबीएस की पढ़ाई करने जयपुर के सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज चले गए. इसके बाद वह डॉक्टरी की आला पढ़ाई के लिए ब्रिटेन चले गए.


फारूक अब्दुल्ला का सियासी सफर
फारूक अब्दुल्ला का पूरा परिवार राजनीति में था, इस वजह से शुरू से ही उनकी भी सियासत में दिलचस्पी थी. हालांकि उनके सक्रिय राजनीतिक सफर की शुरुआत साल 1980 में उस वक्त हुई जब उन्होंने श्रीनगर से लोकसभा चुनाव लड़ा और इसमें कामयाबी भी हासिल की. 


अगस्त 1981 में उन्हें जम्मू-कश्मीर की उस समय की रूलिंग पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस का प्रेसिडेंट बना दिया गया था. साल 1982 में उनके पिता का देहांत हो गया था, जिसके बाद वह राज्य के मुख्यमंत्री भी बने. कहा जाता है कि फारूक के प्रेसिडेंट बनने के लिए उनकी योग्यता केवल इतनी थी कि वह शेख अब्दुल्ला के बेटे थे. उनके मुख्यमंत्री पद पर बैठते ही 1984 में उनके बहनोई मोहम्मद शाह ने पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस के समर्थन से खुद मुख्यमंत्री बन गए. जिसके बाद फारूक अब्दुल्ला की सरकार गिर गई.

 

हालांकि इसके बाद 1986 में कश्मीर में दंगे हुए और फारूक अब्दुल्लाह के बहनोई की सरकार भी गिर गई, लेकिन कुछ वक्त बाद कांग्रेस की हिमायत से फारूक अब्दुल्ला ने फिर अपनी सरकार बनाई और मुख्यमंत्री बन गए.

 

2002 में चुनाव हुए और इस बार फारूक के बेटे उमर अब्दुल्ला ने नेशनल कॉन्फ्रेंस की कमान संभाली, लेकिन वह चुनाव हार गए और मुफ्ती मोहम्मद सईद की गठबंधन की सरकार बनी. इसके बाद से फारूक अब्दुल्ला ने राज्य की राजनीति को तो छोड़ दिया और केंद्रीय स्तर की राजनीति पर फोकस करने लगे. 

 

साल 2002 में उन्होंने जम्मू और कश्मीर से राज्यसभा का चुनाव जीता. उसके बाद 2009 में भी उन्होंने राज्यसभा सदस्य के तौर पर शपथ ली. लेकिन मई 2009 में अब्दुल्ला ने राज्यसभा सदस्य के पद से इस्तीफा दे दिया और वह श्रीनगर से लोकसभा सदस्य के तौर पर चुने गए. 


NSA के तहत हिरासत में लिए गए
इसके बाद 16 सितंबर 2019 को अब्दुल्ला को सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत हिरासत में लिया गया और वह ऐसे पहले राजनेता बन गए जिन्हें इस अधिनियम के तहत हिरासत में लिया गया था. इसके अलावा राज्य सरकार ने फारूक अब्दुल्लाह को धारा-370 हटने के बाद यानी 5 अगस्त को हाउस अरेस्ट किया गया था. इसके बाद 15 सितंबर 2019 से उन्हें नज़रबंद कर दिया गया था. करीब साढ़े 7 महीने के बाद 13 मार्च 2020 को उन्हें पीएसए के तहत नज़रबंदी से रिहा कर दिया गया.


ब्रिटिश नर्स से रचाई शादी
वहीं अगर फारूक अब्दुल्लाह की निजी ज़िंदगी की बात करें तो वह बहुत कम लोग जानते हैं. उन्होंने एक ब्रिटिश नर्स के साथ शादी की, जिनका नाम मोली था. मोली से उन्हें एक बेटा और तीन बेटियां हैं. उनके बेटे का नाम उमर अब्दुल्ला है, जो नेशनल कांफ्रेंस के नेता हैं और वह भी जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. फारूक अब्दुल्ला की तीन बेटियां हैं जिनका नाम सफीना, हिना और सारा है. 


अब्दुल्ला ख़ानदान ने बनाया सचिन पायलट को दामाद
सारा अब्दुल्ला ने 15 जनवरी 2004 को सचिन पायलट से शादी की थी. सारा और सचिन की प्रेम कहानी और शादी काफी चर्चित है, क्योंकि सचिन पायलट एक हिंदू परिवार से हैं और सारा मुस्लिम हैं. कहा जाता है कि सचिन और सारा के प्यार के बीच सियासत, धर्म जैसी कई रुकावटें आई थीं, लेकिन इसमें जीत प्यार की हुई और 2004 में दोनों ने शादी कर ली और इस तरह सचिन पायलट हिन्दू होते हुए भी कश्मीर के कद्दावर अब्दुल्लाह ख़ानदान के दामाद बन गए.