पुलवामा : आपने अपने घर में बच्चों को पेन्सिल चलाकर अपना भविष्य लिखते देखा होगा लेकिन क्या आपको पता है कि पेन्सिल जो आसानी से आपको दुकानों पर मिलती है वो कहां और कैसे बनती है तो चलिए हमारे साथ कश्मीर जहां हम आपको पेन्सिल गांव में लेकर चलते है देखिए हमारी इस खास रिपोर्ट में ।
हर घर में बच्चों के पढ़ने के लिए जो सबसे जरूरी चीज होती है वो है पेन्सिल। बच्चे पेन्सिल से लिखकर ही अपने शिक्षा की शुरूआत करते है लेकिन क्या आपको पता है। ये पेन्सिल कई बड़े ब्रांडो में आती है और ये ब्रांड अपनी पेन्सिल को जिस लकड़ी से बनाते है वो खास किस्म की लकड़ी कहां मिलती है और कैसे पेन्सिल बनाई जाती है। तो चलिए हमारे साथ कश्मीर के पुलवामा जिले में जहां एक छोटा सा गांव उखू अब पेन्सिल गांव के नाम से जाना जाता है । इस गांव में पेन्सिल बनाने के लिए जो खास किस्म की लकड़ी चाहिए होती है वो केवल कश्मीर के इस गांव उखू में ही विशेष तौर पर पैदा की जाती है । कश्मीर को लेकर आतंकी घटनाओं की खबरों को तो आपने जरूर देखा होगा। लेकिन आपको बता दे कि कश्मीर से ही आपके बच्चों के भविष्य की शुरूआत होती है। बच्चे जिन अक्षरों को लिखने की शुरूआत जिस पेन्सिल से करते है वो केवल उखू गांव में ही मिलती है। पेन्सिल का कच्चा माल तैयार करने वाली फैक्टरी के मालिक बताते है कि नटराज से लेकर अप्सरा और हिन्दुस्तान तक जो भी बड़ी कम्पनीयां पेन्सिल बना कर बेचती है उन सबका कच्चा माल उखू में ही पैदा किया जाता है और फैक्ट्री में तैयार कर देश के हर कौने तक पहुंचाया जाता है।
पेंसिल फैक्ट्री के मालिक मंज़ूर अली शाह ने बताया कि नटराज कंपनी के कहने पर उन्होंने 2009 में पेंसिल के कच्चे माल का उत्पादन शुरू किया था और उस समय उनके परिवार के सदस्य केवल पेंसिल के कच्चे माल के काम से जुड़े थे और बाद में पेंसिल की मांग धीरे धीरे बढ़ती चली गई और भी लोग इस कच्चे माल की सप्लाई करने लगे लेकिन उनकी गुणवत्ता को सही न पाकर बड़ी कंपनीयों ने उनके मॉल को लेना बंद कर दिया। तब से केवल कश्मीर का उखू गांव है जहां की लकड़ियों को विशेषतौर पर पेन्सिल बनाने के लिए सबसे बेहतर माना जाता है। पहले इनके गांव में इन्ही के परिवार के लोगों ने इस काम की शुरूआत की फिर धीरे धीरे इनसे जुड़ते गये लोगों को इन्होंने रोजगार दिया और आज की तारीख में इनके पास तकरीबन 200 कर्मचारी काम कर रहे है। मंजूर ही वो पहले व्यक्ति है जिन्होंने पेन्सिल के कच्चे माल की फेक्ट्री की शुरूआत की थी। लेकिन उनका मानना है कि अगर इलाके में बिजली समय से रहे तो वो अपने उत्पादन को लगातार बढ़ा सकते है लेकिन बिजली की आपूर्ति इलाके में तकरीबन 7 घण्टें रहती है जिसके कारण इनका काम कम चलता है और उनके उत्पादन पर इसका बड़ा असर पड़ता है।
सोशल मीडिया के जमाने में पेन्सिल गांव के नाम से मशहुर उखू को आज किसी परिचय की जरूरत नहीं है। लेकिन बहुत कम ही लोगों इस बात को जानते है कि नटराज,अपसरा या फिर हिन्दुस्तान कोई भी कम्पनी हो पेन्सिल के कच्चे माल के लिए उसे उखू पर ही निर्भर रहना पड़ता है।