क्या जम्मू कश्मीर में फिर से लागू हो सकता है आर्टिकल -370 ? चर्चा के पीछे की वजह पढ़िए हमारी इस खास रिपोर्ट में

Written By Rishikesh Pathak Last Updated: Jul 04, 2023, 08:16 PM IST

जम्मू कश्मीर में अब क्या होगा इस सवाल की चर्चा हर ओर है। इस चर्चा के पीछे का सबसे बड़ा कारण फिर से एक बार आर्टिकल 370 है। दरसल आर्टिकल 370 के खत्म किए जाने के तीन साल बाद फिर से इस विषय पर चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि मामला देश के सर्वोच्च अदालत में जा पहुंचा है। केन्द्र सरकार द्वारा आर्टिकल 370 को खत्म किए जाने के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इससे सम्बन्धित तकरीबन 20 से ज्यादा याचिकाएं कोर्ट में है और इन सभी याचिकाओं पर 11 जुलाई को सुनवाई होना तय हुआ है। 


इस पूरे मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रेस रिलीज जारी करके बताया है कि चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई में पांच जजों की बेंच इस मामले को सुनेगी। इस बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत होंगे।


इस प्रेस रिलीज के आने के बाद से ही बयानबाजी भी तेज हो गई है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या फिर से जम्मू कश्मीर में आर्टिकल 370 लागू हो सकता है? सरकार ने आर्टिकल 370 को क्यों खत्म किया था आइये कुछ फैक्टस के जरिए हम आपको समझाते है। 


पहले जानिए अनुच्छेद-370 के बारे में? 

पांच अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने आर्टिकल-370 को खत्म कर दिया था। ये कानून जम्मू-कश्मीर में बीते करीब सात दशक से चला आ रहा था।  दरअसल, अक्तूबर 1947 में, कश्मीर के तत्कालीन महाराजा, हरि सिंह ने भारत के साथ एक विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। इसमें कहा गया कि तीन विषयों के आधार पर यानी विदेश मामले, रक्षा और संचार पर जम्मू और कश्मीर भारत सरकार को अपनी शक्ति हस्तांतरित करेगा। 


इतिहासकार की माने तो, 'मार्च 1948 में, महाराजा ने शेख अब्दुल्ला के साथ प्रधानमंत्री के रूप में राज्य में एक अंतरिम सरकार नियुक्त की। जुलाई 1949 में, शेख अब्दुल्ला और तीन अन्य सहयोगी भारतीय संविधान सभा में शामिल हुए और जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति पर बातचीत की, जिससे आर्टिकल-370 को अपनाया गया।'

 
1.    इस आर्टिकल में प्रावधान किया गया कि रक्षा, विदेश, वित्त और संचार मामलों को छोड़कर भारतीय संसद को राज्य में किसी कानून को  लागू करने के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार की मंजूरी की आवश्यकता होगी। ऐसे मामलों में जम्मू कश्मीर की सरकार की अन्तरिम फैसला लेगी। 

2.    इसके चलते जम्मू और कश्मीर के निवासियों की नागरिकता, संपत्ति के स्वामित्व और मौलिक अधिकारों का कानून शेष भारत में रहने वाले निवासियों से अलग था। आर्टिकल-370 के तहत, अन्य राज्यों के नागरिक जम्मू-कश्मीर में संपत्ति नहीं खरीद सकते थे। आर्टिकल-370 के तहत, केंद्र को राज्य में वित्तीय आपातकाल घोषित करने की शक्ति नहीं थी। जो इस आर्टिकल का काफी अहम बिन्दू था। 

3.    आर्टिकल-370 (1) (सी) में उल्लेख किया गया था कि भारतीय संविधान का आर्टिकल 1 आर्टिकल-370 के जरिए से कश्मीर पर लागू होता है। आर्टिकल 1 संघ के राज्यों को सूचीबद्ध करता है। इसका मतलब है कि ये आर्टिकल-370 है जो जम्मू-कश्मीर राज्य को भारतीय संघ से जोड़ता है।

4.    जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 3 में कहा गया था कि जम्मू और कश्मीर राज्य भारत संघ का अभिन्न अंग है और रहेगा। अनुच्छेद 5 में कहा गया कि राज्य की कार्यपालिका और विधायी शक्ति उन सभी मामलों तक फैली हुई है, जिनके संबंध में संसद को भारत के संविधान के प्रावधानों के तहत राज्य के लिए कानून बनाने की शक्ति है। 

5.    जम्मू-कश्मीर का संविधान 17 नवंबर 1956 को अपनाया गया और 26 जनवरी 1957 को लागू हुआ था। पांच अगस्त 2019 को भारत के राष्ट्रपति द्वारा जारी संविधान (जम्मू और कश्मीर के लिए आवेदन) आदेश, 2019 (सीओ 272) द्वारा जम्मू और कश्मीर के संविधान को निष्प्रभावी बना दिया गया था।

 
अनुच्छेद-370 हटने के बाद क्या हालात हैं? 

2019 में जब अनुच्छेद-370 खत्म किया गया था, तब पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने कुछ हद तक स्थिति बिगाड़ने की कोशिश की थी। घुसपैठ के जरिए हिंसा कराने की खूब कोशिश हुई, लेकिन सुरक्षाबलों ने सभी को नाकाम कर दिया गया। केंद्र सरकार ने विशेष तौर पर जम्मू कश्मीर के विकास पर फोकस करना शुरू कर दिया। अब हर बजट में जम्मू कश्मीर के लिए विशेष प्रावधान किए जाते हैं, ताकि यहां के लोगों को मुख्य धारा से जोड़ा जा सके। अनुच्छेद-370 खत्म होने के बाद पहली बार ऐसा हुआ जब जम्मू-कश्मीर संयुक्त राष्ट्र के दागी लिस्ट से बाहर हुआ। 

तो क्या वापस लागू हो सकता है अनुच्छेद-370? 

इसे समझने के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता चंद्र प्रकाश पांडेय से बात की। उन्होंने कहा, 'अनुच्छेद-370 पूरी तरह से कानूनी तौर पर हटाया गया है। संसद की दोनों सदनों से इस प्रस्ताव को पास किया जा चुका है। राष्ट्रपति भी इसे मंजूरी दे चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट कानूनी पहलुओं पर जरूर चर्चा कर सकती है, लेकिन इसे फिर से लागू करना मुश्किल है। संसद का काम कानून बनाना होता है और न्यापालिका का काम उस कानून का पालन करते हुए न्याय दिलाना है।'